ग़लत नीतियों का परिणाम
आज समय की मांग है कि पाकिस्तान पर तुरंत आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएं
अमेरिका को भारतीय युवाओं के लिए अपनी वीजा सुविधाओं का विस्तार करना चाहिए
अमेरिका में एच1-बी वीजा पर काम करने वाले एक पाकिस्तानी डॉक्टर का आतंकवादी संगठन आईएसआईएस की मदद करने और 'लोन वुल्फ' हमला करने की कोशिश में लिप्त पाया जाना इस देश के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा गंभीर मामला है।
दुनिया को उदारवाद पर उपदेश देने वाला अमेरिका आज खुद अपनी ग़लत नीतियों के कारण कई समस्याओं का सामना कर रहा है। उसने पाकिस्तान का अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया, उस पर खूब डॉलर लुटाए। एक तरह से उसने अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद की आग में तेल डाला। अब यह आग उसके घर तक आ पहुंची है।मुहम्मद मसूद नामक उक्त पाकिस्तानी डॉक्टर सिर्फ 31 साल का है। वह एच1-बी वीजा लेकर अमेरिका आया था, जिसे हासिल करना बहुत मुश्किल माना जाता है। अमेरिका ने उसे सीखने और प्रैक्टिस करने के लिए बेहतरीन माहौल दिया, नौकरी दी, सम्मान दिया, लेकिन यह डॉक्टर आईएसआईएस में भर्ती होकर उसी देश को तबाह करने का सपना देख रहा था!
वह रोचेस्टर, मिनेसोटा के मेडिकल क्लिनिक में अनुसंधान समन्वयक के रूप में कार्यरत था। ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उसके सामने ग़रीबी, अशिक्षा, भेदभाव जैसी समस्याएं थीं, जिनके कारण आतंकवाद की राह चुनी। इस घटना के बाद अमेरिकी एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। वहां रहने वाले पाक मूल के अन्य लोगों को शक की नजरों से देखा जाएगा।
अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में विविधतापूर्ण संस्कृति के नाम पर इस कदर वीजा बांटे हैं कि यह कदम उसके लिए मुसीबत बनता जा रहा है। उसने बिना छानबीन किए हिंसाग्रस्त देशों से आए 'शरणार्थियों' को भी खूब जगह दी।
हालांकि अन्य देश भी ऐसे लोगों के लिए अपने दरवाजे खोलते रहे हैं। उदाहरण के लिए, इन दिनों यूक्रेन के कई लोग अपनी जान बचाने के लिए यूरोप व अमेरिका में शरण लिए हुए हैं, लेकिन वे वहां शांतिपूर्वक रहते हैं, स्थानीय समाज व संस्कृति से तालमेल बैठाने की कोशिश करते हैं।
अमेरिका और पाकिस्तान का रिश्ता बहुत विचित्र है। पाकिस्तान की सरकार और फौज का झुकाव अमेरिका की ओर होता है। अगर प्रधानमंत्री या सेना प्रमुख अमेरिका से छत्तीस का आंकड़ा रखे तो वह ज्यादा दिनों तक कुर्सी पर नहीं रह सकता।
इमरान ख़ान ने चीन व रूस से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश में अमेरिका को खूब खरी-खोटी सुनाई थी। उनका हाल सबके सामने है। वहीं, आम जनता अमेरिका से नफरत करती है। हालांकि सबके मन में यह भी इच्छा होती है कि उन्हें अमेरिका का वीजा मिल जाए। पाकिस्तानी समाज के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वहां लोग अमेरिकी वीजा हासिल करने के लिए लंबी-लंबी कतारों में लगे रहते हैं और अमेरिका के ही अहित की कामना करते हैं।
असल में इसके लिए काफी हद तक पाकिस्तान का स्कूली पाठ्यक्रम जिम्मेदार है। सामाजिक माहौल और मीडिया ने भी पाकिस्तानियों में यह मानसिकता विकसित की है कि भारत, अमेरिका, इज़राइल उनके शत्रु हैं, इसलिए उनका कर्तव्य है कि वे इनके विरुद्ध काम करें। लिहाजा डॉक्टर मसूद ने अमेरिका जाकर जो 'कारनामा' किया, उस पर किसी को आश्चर्यचकित होने की जरूरत नहीं है।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने समय रहते इस शख्स के मंसूबों पर पानी फेरकर बड़ी आतंकी घटना टाल दी, लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडेन को याद रखना चाहिए कि यह ऐसी अंतिम घटना नहीं है। पाकिस्तान में आज भी इसी मानसिकता के लोग बहुत बड़ी तादाद में मौजूद हैं। अगर उन्हें अमेरिका आने का मौका मिले तो वे वही सबकुछ दोहराना चाहेंगे, जो डॉक्टर मसूद करना चाहता था। दूसरी ओर यही अमेरिका पाकिस्तान को दिल खोलकर आर्थिक सहायता देता है। उसे फौजी साजो-सामान मुहैया कराता है। उसकी पीठ थपथपाता है। पाकिस्तानियों को धड़ाधड़ वीजा देता है।
आज समय की मांग है कि पाकिस्तान पर तुरंत आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएं। उसे फौजी साजो-सामान देना बंद किया जाए। उसे कट्टरपंथ और आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए सख्त चेतावनी दी जाए। वह जब तक संतोषजनक प्रगति न कर ले, पाकिस्तानियों को वीजा देने पर पाबंदी जारी रहनी चाहिए।
अमेरिका को भारतीय युवाओं के लिए अपनी वीजा सुविधाओं का विस्तार करना चाहिए। भारतीय प्रतिभाएं जहां जाती हैं, वहां अपनी काबिलियत का लोहा तो मनवाती ही हैं, उस देश की मिट्टी से भी बहुत प्रेम करती हैं।