बेतुके दावे

चीन की यह 'नक़्शाबाज़ी' बेतुके दावे के अलावा कुछ नहीं है

बेतुके दावे

बीजिंग में बैठे शी जिनपिंग के 'जी-हुजूरिए' अपने नंबर बढ़वाने के लिए उन्हें उलटी पट्टी पढ़ा रहे हैं

चीन द्वारा तथाकथित 'मानक मानचित्र' जारी कर अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर दावा जताने का प्रयास अत्यंत हास्यास्पद है। चीन सरकार ऐसे अगंभीर कृत्य कर क्यों अपने राष्ट्रपति का मखौल उड़वा रही है? क्या उसे मालूम नहीं कि ऐसे नक्शे जारी करने से संबंधित जगहों पर उसका अधिकार सिद्ध नहीं हो जाता? 

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हो सकता है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को किसी रात सपना आए कि सिंगापुर का नाम बदलकर 'जिनपिंगापुर' रख देना चाहिए और एक नक्शा भी जारी कर देना चाहिए! क्या इससे हकीकत बदल जाएगी? फिर तो शी जिनपिंग सैन फ्रांसिस्को का नाम बदलकर शिन्जा सिटी भी कर सकते हैं! क्या इससे अमेरिका की भौगोलिक स्थिति को कोई फर्क पड़ेगा? 

ये बचकानी हरकतें हैं, जिनसे चीन को बाज़ आना चाहिए। कभी उसके ऐसे नक्शों को बहुत ज्यादा गंभीरता से लिया जाता था। कुछ देशों की सरकारें इससे दबाव में आ जाती थीं, लेकिन अब ड्रैगन हंसी का पात्र बन रहा है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तथाकथित ‘मानक मानचित्र’ को खारिज करते हुए उचित ही कहा है कि सिर्फ बेतुके दावे करने से अन्य लोगों के क्षेत्र आपके नहीं हो जाते। 

इसी साल अप्रैल में चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के ‘पुनः नामकरण’ का मामला काफी चर्चा में रहा था। अब उसने ‘चीन के मानक मानचित्र’ का 2023 संस्करण जारी कर दिया। आखिर चीन बार-बार ऐसी हरकतें क्यों करता है? भारतवासियों को यह जानना बहुत जरूरी है। 

वास्तव में यह चीन की प्राचीन युद्धकला का हिस्सा है, जिसे 'सुन त्ज़ू' कहा जाता है। चीन अपने प्रतिद्वंद्वियों / शत्रुओं से व्यवहार करने के लिए इसके सिद्धांतों पर अमल करता है। सुन त्ज़ू में मनोवैज्ञानिक और सूचना युद्ध प्रणाली पर बहुत जोर दिया गया है। इसके तहत उस देश पर विभिन्न तरीकों से मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश की जाती है। इसके लिए झूठे प्रचार का भी सहारा लिया जाता है।

यह पूरा स्वांग इसलिए रचा जाता है, ताकि उस देश की सरकार और नागरिकों में खौफ पैदा हो कि चीन बहुत शक्तिशाली है, लिहाजा उसके सामने झुकने में ही भलाई है! इसी के तहत वह कभी अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों का ‘पुनः नामकरण’ करता है, कभी इसे दक्षिण तिब्बत कहता है और इस बार तो उसने नक्शा ही छाप दिया! इसके जरिए चीन मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। 

उसका यह पाखंडपूर्ण फॉर्मूला अन्य देशों पर काम कर सकता है, लेकिन भारत पर इसका कोई असर नहीं होगा। भारत आचार्य चाणक्य का देश है, जिन्होंने ड्रैगन के दावों की हवा निकालने के सूत्र पहले ही सिखा दिए हैं। ऐसी स्थिति में संबंधित देश को दृढ़ता दिखानी चाहिए। अगर चीन कुछ जगहों पर बड़े कार्यक्रमों / दौरों से चिढ़े तो वहां ऐसे कार्यक्रम / दौरे धूमधाम से होने चाहिएं। भारत सरकार यही करती नजर आ रही है। 

‘पुनः नामकरण’ की घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अरुणाचल प्रदेश के किबिथू गांव में ‘वाइब्रेंट विलेज’ कार्यक्रम की धूमधाम से शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक साक्षात्कार में कह चुके हैं कि भारत के लिए अपने हर हिस्से में जी20 बैठकें आयोजित करना स्वाभाविक है। उन्होंने यह बात कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में आयोजित कुछ कार्यक्रमों पर चीन की आपत्तियों को खारिज करते हुए कही थी। 

अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इन शब्दों के साथ भारत का रुख स्पष्ट कर दिया है कि 'यह कोई नई बात नहीं है। इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। इसलिए भारत के कुछ क्षेत्रों पर अपना दावा करने वाला मानचित्र पेश करने से मुझे लगता है कि कुछ नहीं बदलता। ... हम बहुत स्पष्ट हैं कि हमारे क्षेत्र कहां तक हैं। यह सरकार इस बारे में बहुत स्पष्ट है कि हमें अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए क्या करने की जरूरत है। आप इसे हमारी सीमाओं पर देख सकते हैं। ... इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।’ 

निस्संदेह चीन की यह 'नक़्शाबाज़ी' बेतुके दावे के अलावा कुछ नहीं है। इससे धरातल पर कोई बदलाव नहीं आने वाला है। बस, बीजिंग में बैठे शी जिनपिंग के 'जी-हुजूरिए' अपने नंबर बढ़वाने के लिए उन्हें उलटी पट्टी पढ़ा रहे हैं।

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