चीनी पैंतरे

चीनी खुफिया नेटवर्क को नष्ट करने के लिए यह जरूरी है कि न केवल इसके मंसूबों का पता लगाया जाए

चीनी पैंतरे

नेपाल पर चीन की लंबे अरसे से नजर है

भारत में घुसपैठ और जासूसी के लिए चीन नित नए पैंतरे आजमा रहा है, जिसके मद्देनजर हमें बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। देश की एक प्रमुख खुफिया एजेंसी द्वारा इस संबंध में अलर्ट जारी कर यह बताना कि 'चीनी एजेंट खुद को नेपाली बताकर यहां आने की कोशिश कर रहे हैं और उनके निशाने पर कई शहर हैं', से पता चलता है कि अगर ड्रैगन डाल-डाल है, तो हमारी एजेंसियां पात-पात हैं। 

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चीनी खुफिया नेटवर्क को नष्ट करने के लिए यह जरूरी है कि न केवल इसके मंसूबों का पता लगाया जाए, बल्कि उन लोगों को चिह्नित कर कठोर कार्रवाई भी की जाए। चीन अपने खुफिया नेटवर्क के लिए नेपाली पहचान का इस्तेमाल इसलिए करता है, क्योंकि नेपाल-भारत के घनिष्ठ संबंध हैं ... लोग आसानी से एक-दूसरे के देश में आवागमन कर सकते हैं ... दोनों देशों में हिंदू धर्म के प्राचीन मंदिर व तीर्थ स्थित हैं, जिनके दर्शन के लिए श्रद्धालु आते-जाते हैं, उन पर कोई संदेह नहीं करता। ... इसके अलावा चेहरे-मोहरे के आधार पर चीनियों के लिए नेपाली बनकर अपनी पहचान छिपा लेना आसान है। 

नेपाल और भारत में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं, जिनकी परस्पर रिश्तेदारियां हैं। दोनों देशों की सरहद पर बहुत ज्यादा सख्ती नहीं है। इसका फायदा घुसपैठिए भी उठा लेते हैं। याद करें, सीमा हैदर भी चार बच्चों को लेकर नेपाल के रास्ते भारत आ गई थी। 

नेपाल पर चीन की लंबे अरसे से नजर है। वह इस पड़ोसी देश में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई हथकंडे इस्तेमाल कर रहा है। उसने नेपाल के राजनीतिक व सामाजिक संगठनों में घुसपैठ कर रखी है। वह इनके नेताओं व कार्यकर्ताओं को धन उपलब्ध कराता है। नेपाल में एक पूर्व चीनी राजदूत पर तो हनीट्रैप जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं। कहा जाता है कि उसकी पहुंच शीर्ष राजनेताओं के कार्यालयों तक थी। नेपाल के कई नेता उसके मोहपाश में आकर भारत के खिलाफ अनर्गल बयान देने लगे थे।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी संपूर्ण विश्व में अपना नेटवर्क स्थापित करना चाहती है। इसके लिए तकनीकी उपकरणों का सहारा लिया जाता है, लेकिन परंपरागत विकल्प ज्यादा भरोसेमंद होते हैं। अमेरिका में कई बार चीनी जासूस पकड़े जा चुके हैं। उनमें से ज्यादातर का तरीका यह था कि सामरिक महत्त्व की जगह के आस-पास ठिकाना बनाएं, वहां संपत्ति खरीदें, फिर सूचनाएं भेजते रहें। 

यूरोप के कई इलाकों में तो चीन ने गुप्त पुलिस थाने बना रखे हैं। इनके जरिए उन लोगों पर नजर रखी जाती है, जो चीन के अत्याचार की पोल खोलते हैं। खासतौर से उइगर समुदाय के वे लोग, जो ड्रैगन के पंजे से निकलकर यूरोप में शरण ले चुके हैं। भारत में चीन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संस्थानों के अलावा तिब्बती समुदाय की जासूसी करवाता है। चीन किसी सूरत में नहीं चाहता कि उसके आस-पास स्थित कोई देश उससे ज्यादा शक्तिशाली हो। वह भारत में अपना माल खपाने के लिए भी ऐसे नेटवर्क का इस्तेमाल करता है, जिससे उसे भारतीय उपभोक्ता बाजार की पर्याप्त जानकारी मिलती रहे। 

इसके अलावा, वह तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा और अन्य नेताओं की जासूसी करवाने की कोशिश करता है। दिसंबर 2022 में बोधगया के कालचक्र मैदान के पास एक चीनी महिला को हिरासत में लिया गया था। वह बौद्ध भिक्षु बनकर आई थी। उस पर जासूसी जैसे गंभीर आरोप लगे थे। वह नेपाल भी गई थी। जुलाई 2023 में नेपाल सीमा से घुसपैठ करते हुए एक चीनी नागरिक को गिरफ्तार किया गया था। उस पर जासूसी का संदेह था। 

चीन अपनी संस्कृति और भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए 'अध्ययन केंद्र' चलाता है। नेपाल में ऐसे कई अध्ययन केंद्र खुल चुके हैं, जो कहने को तो सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन उनका असल मकसद उस देश में जड़ें जमाना और जासूसी नेटवर्क तैयार करना है। चीन के ये मंसूबे पूरी दुनिया के लिए खतरा हैं। इनका पर्दाफाश करते हुए सतर्क रहना ही बेहतर है।

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