इतना 'मोह' क्यों?
सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने से पहले खुद से कुछ सवाल जरूर करने चाहिएं
आज असंख्य माध्यमों से देशसेवा की जा सकती है
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सिविल सेवा की नौकरियों के प्रति 'मोह' के संबंध में जो बयान दिया, वह मौजूदा हालात की कड़वी हकीकत को बयान करता है। वास्तव में ऐसा बयान देने का 'साहस' बहुत कम लोग दिखा पाते हैं। सिविल सेवा के तहत आने वाले पद देश के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि इन पदों पर कुछ अधिकारियों ने उल्लेखनीय काम किए हैं, लेकिन सिविल सेवा की नौकरियों का अत्यधिक महिमा-मंडन करना उचित नहीं है।
हर साल जब यूपीएससी परीक्षा के नतीजे आते हैं तो कई दिनों तक मीडिया में इसी के चर्चे होते हैं। गोया जिसने यह परीक्षा पास कर ली, उसी का जीवन सफल है, बाकी परीक्षाओं / रोजगार के विकल्पों का होना या न होना कोई मायने नहीं रखता! यह सोच बदलने की जरूरत है। जो अभ्यर्थी इस परीक्षा को पास करता है, उसका अपना ज्ञान और कौशल होता है, इससे बिल्कुल इन्कार नहीं किया जा सकता, लेकिन किसी एक परीक्षा को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना ठीक नहीं है।सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने से पहले खुद से कुछ सवाल जरूर करने चाहिएं। यहां देखादेखी का सिलसिला नहीं होना चाहिए, न यह जरूरी है कि हर प्रतिभाशाली विद्यार्थी सिविल सेवा में ही जाए। अगर कोई युवा ईमानदारी से देशसेवा करना चाहता है और इसके लिए सिविल सेवा का रास्ता चुनता है तो यह बहुत अच्छी बात है। इसका स्वागत होना चाहिए, लेकिन यह सोचना कि देशसेवा सिर्फ और सिर्फ सिविल सेवा से संबंधित किसी पद को प्राप्त करने के बाद ही की जा सकती है, तो यह सरासर गलत है।
देशसेवा करने के बहुत तरीके हो सकते हैं। अगर आप किसान परिवार से आते हैं और वैज्ञानिक समझ अच्छी है तो खेती करने के नए-नए तरीके ढूंढ़कर भी देशसेवा कर सकते हैं। अगर आपके पास तकनीकी ज्ञान है तो कोई नया यंत्र विकसित कर देशसेवा में योगदान दे सकते हैं। अगर आपके पास कोई खास हुनर है तो उससे संबंधित व्यवसाय की शुरुआत करना और लोगों को रोजगार देना भी देशसेवा है। जायज तरीकों से कमाई करना और आयकर देना भी देश की बहुत बड़ी सेवा है।
आज असंख्य माध्यमों से देशसेवा की जा सकती है। अगर प्रयास सच्चे हैं तो समाज आपके योगदान को स्वीकारेगा, सराहेगा। जिन लोगों के प्रयासों से बड़े स्तर पर सकारात्मक बदलाव आते हैं, उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिलता है। बात कुछ कड़वी है, लेकिन सच है कि सिविल सेवा की नौकरियों के अत्यधिक महिमा-मंडन ने कई प्रतिभाशाली युवाओं को बहुत नुकसान पहुंचाया है। जो अभ्यर्थी इस परीक्षा को पास कर लेता है, कोचिंग सेंटर उसकी सफलता का खूब बखान करता है। ठीक है, सफलता मिली है तो उसकी खुशी मनाएं। उसके साथ यह भी बताएं कि आपके यहां ऐसे कितने अभ्यर्थी थे, जो यह परीक्षा पास नहीं कर पाए? जो सफल हो गए, उनके बारे में बहुत कुछ बताया जाता है। जो सफल नहीं हुए, उनके बारे में क्यों नहीं बताया जाता?
कितने ही अभ्यर्थी ऐसे होते हैं, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के चार-पांच साल इसमें लगा दिए, लाखों रुपए खर्च कर दिए। कलेक्टर बनने की धुन में अन्य विकल्पों के बारे में नहीं सोचा था। अब वे क्या करें? दिल्ली के जिन इलाकों में किराए पर कमरा लेकर अभ्यर्थी तैयारी करते हैं, उनके लिए हालात बहुत मुश्किल हो चुके हैं। छोटा-सा कमरा लेने के लिए भी 15 से 20 हजार रुपए हर महीने देने होते हैं।
हाल में एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में हादसे के बाद अभ्यर्थी आक्रोशित हो गए थे। लोगों को यह जानकर हैरत हुई कि नियम और नैतिकता पर लंबा-चौड़ा भाषण देने वाले कुछ कोचिंग संचालक खुद ही इनकी धज्जियां उड़ा रहे थे। इन सबसे घिरा भारत का युवा करे तो क्या करे? परिवार की आकांक्षाएं भी अपनी जगह होती हैं। इसके मद्देनजर समाज की सोच बदलनी होगी। रोजगार के अन्य विकल्पों के प्रति भी सम्मान की भावना पैदा करने की बहुत जरूरत है।