भारत विरोधी खालिस्तानियों को ट्रूडो सरकार की शह
कनाडाई क्षेत्र के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देनी चाहिए
Photo: JustinPJTrudeau FB Page
ललित गर्ग
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निश्चित रूप से जस्टिन ट्रूडो सरकार को वहां सक्रिय खालिस्तानी अलगाववादियों को भारत के खिलाफ जहर उगलने के लिये कनाडाई क्षेत्र के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देनी चाहिए, क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ट्रूडो सरकार द्वारा उपद्रवियों को संरक्षण देना उसकी राजनयिक और लोकतांत्रिक साख को कमजोर करने वाला कदम ही है| राजनीतिक स्वार्थों के लिये प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खालिस्तान समर्थकों का सहारा लेकर भारत की एकता और अखंडता को खण्डित करने पर तूले हैं, वे खालिस्तानी अतिवादियों को बेलगाम करके खूद के लिये भी खतरा मोल ले रहे हैं, वे यह समझने को तैयार नहीं कि खालिस्तान समर्थक भारत के साथ-साथ कनाडा के लिए भी खतरा बन सकते हैं| वे पहले से ही ड्रग्स और हथियारों के साथ मानव तस्करी में लिप्त हैं| जस्टिन ट्रूडो को यह समझना होगा कि कनाडा की नागरिकता लिए खालिस्तानी अतिवादी खालिस्तान का कितना ही शोर मचाएं, भारत में उसका कहीं कोई समर्थन नहीं और भारत की एकता पर उसका तनिक भी असर नहीं होने वाला है|
गौर करने वाली बात यह है कि ट्रूडो के मुकाबले इस घटना की ज्यादा कड़ी निंदा कनाडा के ओंटारियो सिख ऐंड गुरुद्वारा कौंसिल ने की है| वैसे यह भी ध्यान रखना होगा कि मंदिरों में जिन पर हमला हुआ, वे भी कनाडा के ही नागरिक हैं| जस्टिन ट्रूडो ने जितनी सक्रियता खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर के मामले में दिखाई, उतनी इस मामले में भी दिखाते, तो शायद चीजें बदल सकती थीं, जो उनके लिये ज्यादा राजनीतिक लाभकारी होती| यह एक विडंबना ही है कि कुछ दशक पहले तक खालिस्तान के जिस पागलपन ने भारत को काफी परेशान किया था, पंजाब एवं समूचा देश लम्बे समय तक खालिस्तानी आतंकवाद का शिकार रहा और अब जब भारत से उसका नामो-निशान तक मिट चुका है, तो कनाडा में उसे जोर-शोर से पाला-पोसा जा रहा है| मामला सिर्फ इतना नहीं है, कनाडा अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी दूसरे देश के खिलाफ होने दे रहा है, तो इस पर पूरी विश्व बिरादरी को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए| हम सीमा पार आतंकवाद फैलाने के पाकिस्तानी दंश को लंबे अरसे से भोगते रहे हैं और अब कनाडा में जो हो रहा है, वह भी एक तरह से सीमा पार अलगाववाद फैलाना ही है| भारत को कनाडा के साथ अमेरिका के रवैये पर भी ध्यान देना होगा, क्योंकि वह गुरपतवंत सिंह पन्नू को खुले तौर पर संरक्षण दे रहा है| भारत के खिलाफ विदेश की धरती से हो रहे इन षड़यंत्रों एवं साजिशों को गंभीरता से लेना होगा|
पिछले साल खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद ट्रूडो सरकार लगातार, भारत के साथ लापरवाही से रिश्ते खराब कर रही है| इस नतीजे पर पहुंचने का एक कारण यह भी है कि कनाडा के साथ अमेरिका की भी नागरिकता लिए खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने कुछ दिनों पहले यह धमकी दी थी कि कनाडा के हिंदुओं को दीवाली नहीं मनाने दी जाएगी| इस धमकी के बाद भी यदि खालिस्तानी चरमपंथी हिंदू मंदिर में धावा बोलने आ गए तो इसका यही मतलब निकलता है कि कनाडा सरकार का उन पर लगाम लगाने का कोई इरादा नहीं| इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और वहां के प्रमुख विपक्षी दल के नेता ने हिंदू मंदिर को निशाना बनाए जाने की निंदा की, लेकिन इनमें से किसी ने भी खालिस्तान समर्थकों का उल्लेख करना आवश्यक नहीं समझा, इससे स्पष्ट है कि कनाडा सरकार खालिस्तानियों को खुला समर्थन कर रही है| बहरहाल, यह तय है कि रह-रह कर सामने आ रही यह हिंदू-सिख संबंधों में तल्खी, भारत तथा कनाडा सरकारों के संबंधों में आ रही गिरावट से गहरे तक जुड़ती है| हाल के दिनों में कनाडा सरकार के मंत्रियों ने मर्यादा की सीमाएं लांघते हुए भारत सरकार पर अनेक आक्षेप किये हैं| यहां तक कि कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन ने भारतीय गृह मंत्री पर आरोप लगाये कि उन्होंने कनाडा में भारत विरोधी अलगाववादियों को निशाना बनाने के लिये हिंसा व खुफिया जानकारी जुटाने के आदेश दिए| जैसा कि स्वाभाविक ही था इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप का भारत सरकार ने भी कड़ा प्रतिवाद किया है| भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कड़े शब्दों में इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है| नई दिल्ली ने इन आरोपों को बेतुका और निराधार बताकर नकार दिया है| कनाडा सरकार इसके कोई ठोस प्रमाण न देकर खुद को ही हंसी का पात्र बनाया|
खालिस्तान समर्थक अतिवादी तत्वों ने हिंदू मंदिर परिसर में भारतीय उच्चायोग की ओर से आयोजित एक शिविर को भी निशाने पर लिया| इस शिविर में बड़ी संख्या में सिख भी मौजूद थे| साफ है कि खालिस्तान समर्थक कनाडा में रह रहे हिंदुओं के साथ सिखों के लिए भी मुसीबत बन रहे हैं| यह भी उल्लेखनीय है कि उन्होंने जिस हिंदू मंदिर को निशाना बनाया, उसमें सिख भी आते हैं| इन सभी जगहों पर भारतीय उच्चायोग ने पेंशन पाने वाले भारतीयों को जीवन प्रमाणपत्र बांटने के लिए शिविरों का आयोजन किया था| कनाडा में इस तरह के शिविर लगाने की परंपरा पुरानी है| कनाडा में कई बार मंदिरों की दीवारों पर भारत विरोधी नारे भी लिखे जा चुके हैं| खालिस्तानियों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं होने से उनका दुस्साहस बढ़ रहा है| भारत को इसके लिए तैयार रहना चाहिए कि कनाडा में भारतीय मूल के लोगों और धार्मिक स्थलों को खालिस्तानी अतिवादी तत्वों की ओर से आगे भी निशाना बनाया जा सकता है, क्योंकि वहां कुछ माह बाद आम चुनाव होने हैं| यह किसी से छिपा नहीं कि इन चुनावों में अपनी राजनीतिक दशा सुधारने के लिए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो एक विघटनकारी खेल खेल रहे हैं| अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कोई देश उस अतिवाद को कैसे पलने दे सकता है| ऐसी अपरिपक्व राजनीतिक सोच एवं कार्रवाई से जस्टिन ट्रूडो की सरकार का संकट ही बढ़ेगा और वे और उनके दल का अगले चुनाव में सफाया हो जाने की पूरी आशंका है|