आध्यात्मिक साधना के लिए आवश्यक सोपान है श्रद्धा और समर्पण: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

श्रद्धा और समर्पण की भूमिका पर भक्ति शक्तिशाली बनती है

आध्यात्मिक साधना के लिए आवश्यक सोपान है श्रद्धा और समर्पण: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

श्रीरामपुरम से पदयात्रा करते हुए संतजन चामराजपेट पहुंचे

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। गुरुवार काे चामराजपेट स्थित एसएलवी अपार्टमेंट में आयाेजित पार्श्व पद्मावती महापूजन और मणिभद्रघंटाकर्ण वीर अनुष्ठान के अवसर पर श्रद्धालुओं काे मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि जैन परंपरा में अनेक प्रचीन मंत्र, यंत्र, चित्र, मूर्तियाें और पूजन-अनुष्ठानाें की अमूल्य विरासत आज भी सुरक्षित है।

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विदेशी संग्रहालयाें में भी विपुल मात्रा में ऐसी सामग्री पाई जाती है जाे आधुनिक समाज के लिए अत्यंत उपयाेगी है। मूर्तिपूजा के इतिहास में जाे काम जैन परंपरा में हुआ है, शायद उतना कहीं नहीं हुआ। यहां तीर्थंकर अरिहंत और उनके उपासक देवी-देवताओं की भक्ति एवं साधना के लिए सर्वस्व समर्पित करने की गाैरवशाली परंपरा रही है।

आचार्यश्री विमलसागर सूरीश्वरजी ने कहा कि श्रद्धा और समर्पण की भूमिका पर भक्ति शक्तिशाली बनती है। आध्यात्मिक साधना के लिए यह प्रथम साेपान है। ज्ञानयाेग, तपयाेग आदि कठिन है, जबकि भक्तियाेग सबसे सरल है। भक्ति मनुष्य काे आराध्य भगवान की समीपता का अनुभव कराती है। भक्ति से मन की एकाग्रता, सकारात्मक ऊर्जा और भावनात्मक वातावरण की निर्मिति हाेती है।

इसीलिए आराध्य भगवान के विविध अनुष्ठान सदैव महत्वपूर्ण और प्रभावशाली माने जाते हैं। मंत्राें, मुद्राओं और उत्तम सामग्रियाें के द्वारा दैविक शक्तियाें काे रिझाने का प्रयत्न हाेता है। गुरुवार काे पूजन-अनुष्ठान के लिए पीठिकाओं पर पार्श्वनाथ भगवान और पद्मावती की मरगज की बनी मूर्तियां और मणिभद्र वीर व घंटाकर्ण वीर के रजत के बने विशिष्ट यंत्राें की स्थापना की गई।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी, गणि पद्मविमलसागरजी और श्रमण परिवार ने सामूहिक मंत्राेच्चारपूर्वक महापूजन सम्पन्न कराया। अनुष्ठान के उत्तरार्द्ध में हवनकुंड में एक साै आठ आहुतियां दी गईं। रक्षा ग्रंथिविधान, महाआरती और शांतिधारा के साथ अनुष्ठान की मंगल पूर्णाहुति हुई।

इससे पूर्व प्रातः श्रीरामपुरम से पदयात्रा करते हुए संतजन चामराजपेट पहुंचे। सैकड़ाें श्रद्धालुओं ने उनका भावपूर्ण स्वागत किया। महिलाओं ने मंगल कलशाें काे धारण कर जैनाचार्य का स्वागत किया।

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