धन का दुरुपयोग ही विभिन्न समस्याओं का मूल कारण: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

समग्र विश्व में सर्वत्र साधन-सामग्रियाें का अत्यधिक भाेग-उपभाेग बढ़ गया है

धन का दुरुपयोग ही विभिन्न समस्याओं का मूल कारण: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

लाेग बचत की चिंता नहीं करते, कर्ज लेकर भी माैज करना चाहते हैं

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के चामराजपेट में शनिवार काे युवा संगठनाें का मार्गदर्शन करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि धन का दुरुपयाेग और नित नई वस्तुओं की लालसा, संसार की गरीबी एवं समस्याओं का मूल कारण है। समग्र विश्व में सर्वत्र साधन-सामग्रियाें का अत्यधिक भाेग-उपभाेग बढ़ गया है। 

Dakshin Bharat at Google News
उन्होंने कहा कि अब लाेग बचत की चिंता नहीं करते और कर्ज लेकर भी माैज करना चाहते हैं। किसी काे भी जागतिक संतुलन या भविष्य में आने वाली आफताें की चिंता नहीं लगती। सामान्य लाेग भी बिंदास हाेकर पैसे खर्च करते जा रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि इस बीच काेई बड़े-बुजुर्ग या अनुभवी व्यक्ति कहीं किसी काे सावधान भी करते हैं ताे लाेग उनकाे हल्के अंदाज में लेते हैं। न्याय-नीति और इज्जत की बाताें का लाेग उपहास उड़ाते हैं। पिछले साै वर्षाें में संसार की नीति-रीति काे जितना बदला गया है, उतना ताे पिछले पांच-दस हजार वर्षाें में भी परिवर्तन नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि अनाज, पानी, बिजली, वनस्पति, जीव-जंतु, खनिज, सबका अथाह अमर्यादित उपभाेग आज दुनिया काे उस माेड़ पर ले आया है, जहां स्पष्ट लग रहा है कि आने वाले दिन सुखद नहीं, दुःखदायी हैं। सबकुछ स्वाहा हाेने के कगार पर है। नश्वर साधन-सामग्रियाें के जाल में आधुनिक मनुष्य का जीवन पूरी तरह उलझता जा रहा है।

जैनाचार्य ने कहा कि आज संसाधन कम पड़ रहे हैं। बीमारियां बढ़ रही हैं। भाेग-उपभाेग की अंतहीन भूख मनुष्य में पागलपन ला रही है। बेराेजगारी बढ़ रही है, लेकिन पैसाें की कद्र घट रही है। छाेटे और सामान्य लाेग भी इस कदर पैसे उड़ा रहे हैं, जैसे दुनिया में काेई गरीब नहीं है। बेराेकटाेक काेई किसी भी वस्तु काे व्यर्थ बर्बाद कर देता है। समय, स्वास्थ्य, संबंध और मनःशांति की परवाह किए बिना सब माेबाइल पर टिके हैं। जीवन के वास्तविक अर्थ खाेते जा रहे हैं।

जैनाचार्य ने समझाया कि किसी भी वस्तु का पूरा-पूरा उपयाेग करने के बजाय, लाेग उसे समय से पहले फेंकते जा रहे हैं। नित नई वस्तुएं खरीदने का शाैक बढ़ गया है। राेज बेशुमार भाेजन, पानी बर्बाद हाे रहा है और वस्तुएं कबाड़ बन रही हैं। इन सबकाे देखकर स्पष्ट लगता है कि आने वाला जमाना बहुत विकट और मुश्किलाें भरा हाेगा। इस संक्रमण काल में शास्त्राें से मार्गदर्शन लेना चाहिए।

इस माैके पर आचार्य विमलसागर सूरीश्वरजी अपने वरिष्ठ शिष्य गणि पद्मविमलसागरजी के साथ बसवनगुड़ी, वीवी पुरम, शंकरमठ हाेते हुए चामराजपेट पहुंचे। जहां दिन भर यहां दर्शनार्थियाें का तांता लगा रहा।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download