कोरोना से होने वाली मौतों को रोकने के लिए टीके कितने असरदार?

कोरोना से होने वाली मौतों को रोकने के लिए टीके कितने असरदार?

कोविड हर व्यक्ति पर एक जैसा असर नहीं डालता है


मेलबर्न/द कन्वरेशन। ब्रिटेन, इजराइल और दक्षिण अफ्रीका तथा कई अन्य देशों के आंकड़ों पर टिप्पणी करने वाली सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया गया है कि कोविड से होने वाली मौत (या सभी मौत) अब टीके की खुराक न लेने वाले नागरिकों के मुकाबले टीके की खुराक लेने वाले लोगों में अधिक है। अन्य लोग अधिक बढ़ चढ़कर दावे करते हैं कि टीके कोविड से होने वाली मौत से बचाने में कुछ नहीं करते।

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लेकिन इस हफ्ते यह कहने वाले क्लाइव पामर कि टीके काम नहीं करते और संदेश के जरिए टीके पर गलत सूचना फैलाने वाले क्रेग कैली समेत कई लोगों से यह पूछना चाहिए कि क्या उन्होंने संदर्भ समझा, उचित तरीके से आंकड़ों का विश्लेषण किया और सटीक रूप से नतीजों की व्याख्या की। ‘टीके की खुराक ले चुके’ के तौर पर क्या गिना जाता है?

अध्ययनों या आंकड़ों की तुलना करने पर बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि आंकड़ा प्रदाता कैसे ‘टीके की खुराक ले चुके’ व्यक्ति को परिभाषित करते हैं। कुछ टीके एक ही खुराक वाले हैं जबकि अन्य दो खुराक वाले हैं। ज्यादातर जगह ‘पूरी तरह से टीकाकरण’ को अंतिम खुराक लेने के बाद के दो हफ्तों के तौर पर परिभाषित किया जाता है लेकिन इस तरह के सोशल मीडिया पोस्ट्स में उन सभी लोगों को एक साथ रखा जाता है जिन्होंने कोई भी खुराक ली है।

हमने उन मरीजों की भी तुलना की जिन्होंने अलग-अलग टीकों की खुराक ली या टीकों की मिश्रित खुराक ली। जल्द ही हमें उन लोगों पर भी नजर रखनी होगी जिन्होंने बूस्टर खुराक ली है। सभी क्षेत्रों में आवश्यक जानकारियां नहीं दी जाती है। शुक्र है कि हमारे पास कुछ अच्छे आंकड़े है : न्यू साउथ वेल्स (एनएसडब्ल्यू) दुनिया के सबसे अधिक टीकाकरण वाले क्षेत्रों में से एक बनने जा रहा है और एनएसडब्ल्यू ने टीके की खुराक ले चुके और टीके की खुराक न लेने वाले लोगों के बीच तुलना करके विस्तारपूर्वक आंकड़ें प्रकाशित किए है जो दिखाते हैं कि टीकाकरण काफी प्रभावी है।

मान लीजिए एनएसडब्ल्यू की तकरीबन कुल 80 लाख की आबादी के 95 प्रतिशत लोग टीके की पूरी तरह खुराक ले चुके हैं। यानी 76 लाख लोग। कल्पना कीजिए टीके की पूरी तरह खुराक ले चुके 0.05 प्रतिशत लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता होती है। यह महज 4,000 लोगों की संख्या है।

मान लीजिए टीके की खुराक न लेने वाले 4,00,000 में एक प्रतिशत लोग कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होते हैं। यह 4,000 लोग हैं तो टीके की खुराक लेने वाले और न लेने वाले लोगों के अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या समान होगी। लेकिन टीके की पूरी तरह खुराक लेने वाले 0.05 प्रतिशत के अस्पताल में भर्ती होने के मुकाबले टीके की खुराक न लेने वाले एक प्रतिशत लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की संख्या 20 गुना अधिक है।

कोविड-19 से मरने वाले लोगों की संख्या पर भी यही परिदृश्य लागू होता है। कोविड हर व्यक्ति पर एक जैसा असर नहीं डालता है। कोरोना वायरस के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले और मरने वाले लोगों की दर लिंग, पहले से मौजूद स्वास्थ्य स्थितियों और उम्र पर निर्भर करती है। इसलिए महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के मरने की आशंका अधिक है और बुजुर्ग लोगों तथा अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों के मामले में भी यह सच है।

हम जानते हैं कि कुछ ‘झूठ, सफेद झूठ और आंकड़े’ हैं। फिर भी कुछ फर्जी सोशल मीडिया दावे असली संख्याओं पर निर्भर करते हैं। तो सवाल यह नहीं होना चाहिए कि क्या आप आंकड़ों पर यकीन रखते हैं? बल्कि यह होना चाहिए कि किन आंकड़ों पर आपको यकीन रखना चाहिए? सबसे अच्छी सलाह है कि पीछे हटिए और बड़ी तस्वीर पर गौर करिए।

जब महामारी के मामलों में कमी आ जाएगी तो एक दिन हो सकता है कि कोविड-19 का केवल एक मरीज ही अस्पताल में भर्ती हो। अगर उस मरीज का टीकाकरण हो चुका हो तो क्या हम यह कहेंगे कि अस्पताल में भर्ती 100 प्रतिशत मरीज ऐसे हैं जिनका टीकाकरण हो चुका है, इसलिए टीकाकरण काम नहीं करता है?

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