तिरुवनंतपुरम में दिग्गजों के बीच ‘करो या मरो’ का मुकाबला

तिरुवनंतपुरम में दिग्गजों के बीच ‘करो या मरो’ का मुकाबला

तिरुवनंतपुरम

तिरुवनंतपुरम/भाषा। अगर आगामी लोकसभा चुनाव में केरल में तीन दलों सत्तारूढ़ एलडीएफ, विपक्षी यूडीएफ और भाजपा-राजग के लिए कहीं भी करो या मरो’ की स्थिति है तो वह प्रतिष्ठित तिरुवनंतपुरम सीट है जहां दिग्गजों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला दिखने की उम्मीद है।

कांग्रेस नीत यूडीएफ के मौजूदा सांसद शशि थरूर तीसरी बार जीत के लिए आत्मविश्वास से लबरेज हैं जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता कुम्मनम राजशेखरन और माकपा नीत एलडीएफ के प्रत्याशी एवं मौजूदा विधायक सी दिवाकरण तीसरी बार जीत के थरूर के सपने को चकनाचूर करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।

राज्य के दक्षिणतम छोर पर स्थित तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट अरब सागर के तट से लेकर पश्चिमी घाट के ढलान तक फैली है जहां 13,34,665 मतदाता हैं। शहरी, ग्रामीण और तटीय इलाकों वाले इस क्षेत्र में सात विधानसभाएं आती हैं-तिरुवनंतपुरम, कझाकूट्टम, वत्तियार्कावू, निमोम, पारश्शाला, कोवलम और नेय्याटिंकारा।

चुनावी इतिहास के अनुसार, कोई भी पार्टी तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र को अपना गढ़ बताने का दावा नहीं कर सकती क्योंकि इसने कांग्रेस और एलडीएफ के दूसरे सबसे बड़े घटक दल-भाकपा दोनों के प्रत्याशियों को चुना है। यूडीएफ ने अपनी मौजूदा सीट को बरकरार रखने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। वहीं, इस सीट को वापस हासिल करना एलडीएफ के लिए गर्व की बात होगा।

2014 के आम चुनाव में एलडीएफ को भाजपा के बाद इस सीट पर तीसरा स्थान मिला था। जहां तक भाजपा का सवाल है तो तिरुवनंतपुरम उन चुनिंदा सीटों में से एक है जहां वह कमल खिलने की उम्मीद कर रही है। भाजपा सबरीमला मुद्दे से लेकर नरेंद्र मोदी सरकार की विभिन्न विकास पहलों को भुनाने की कोशिश कर रही है।

दो बार इस सीट से विजयी रहे थरूर के लिए इस सीट को फिर से हासिल करना इस बार आसान नहीं होगा क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार भी मतदाताओं के बीच उतने ही लोकप्रिय हैं और वे एक-एक वोट पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। थरूर ने 2009 में पहली चुनावी जीत में 99,998 मतों से भारी जीत हासिल की थी। हालांकि 2014 के आम चुनाव में यह अंतर गिरकर 15,000 रह गया। भाजपा के ओ राजगोपाल ने उन्हें आखिरी क्षण तक कड़ी टक्कर दी थी।

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