भारत इजराइल की नजदीकियां

भारत इजराइल की नजदीकियां

उम्मीद के अनुसार ही इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की छह दिवसीय भारत यात्रा का अत्यंत भव्य शुभारंभ हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रोटोकॉल तो़डकर नेतन्याहू की अगवानी की और उनके सम्मान में राजधानी दिल्ली स्थित तीन मूर्ति चौक का नाम बदलकर ‘तीन मूर्ति हाइफा चौक’’ रखा। पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी की इजराइल यात्रा से ही यह सुनिश्चित हो गया था कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के रिश्ते और प्रगा़ढ होंगे। कोई पन्द्रह साल बाद यह इजराइल के किसी ब़डे नेता की भारत यात्रा है। सोमवार को मोदी-नेतन्याहू वार्ता में दोनों देशों के बीच रक्षा, विज्ञान, तकनीक, तेल, सौर ऊर्जा, साइबर सुरक्षा आदि क्षेत्र में कुल नौ अहम समझौते हुए। दोनों नेताओं की साझा प्रेस वार्ता में नेतन्याहू ने मोदी को क्रांतिकारी नेता बताते हुए कहा कि उनके प्रयासों से भारत महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करेगा। मोदी ने भी हिब्रू भाषा में नेतन्याहू का स्वागत किया और उनके नेतृत्व की तारीफ की। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों यरूशलम को राजधानी बनाने के सवाल पर भारत ने इजराइल और अमेरिका के विरुद्ध जाकर संयुक्त राष्ट्र में वोट किया था। जाहिर है कि भारत के इस रुख से इजराइल को निराशा हुई होगी। बावजूद इसके, नेतन्याहू ने दिल्ली में स्पष्ट किया कि एक नकारात्मक वोट से दोनों देशों के रिश्ते बदल नहीं सकते, तो इसका अर्थ है कि वह एक सोची-समझी कूटनीति की ओर संकेत कर रहे हैं।दरअसल, अपनी क्षेत्रीय कूटनीति के कारण इजराइल मध्य पूर्व से लेकर एशिया तक के देशों में अलग-थलग रहा है। अलबत्ता, नेतन्याहू अधिकांश देशों का समर्थन जुटाना चाहते थे। एशियाई देशों में चीन तो पहले से ही इजराइल के मसले पर तटस्थ रुख रखता है। रूस से क्षेत्रीय कूटनीति के कारण इजराइल से वैचारिक मतभेद है। भारत एक उभरती हुई विश्व शक्ति है, लिहाजा उसके समर्थन का वैश्विक महत्व है। जहां तक भारत-फिलस्तीन के बीच के रिश्तों का सवाल है, तो ये भी काफी गहरे हैं। तभी भारत फिलीस्तीन के नागरिकों के अधिकारों की जोर-शोर से पैरवी करता रहा है। फिर फिलीस्तीन भारत का ऐसा सहयोगी देश रहा है जिसने कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन करने में कभी हिचकिचाहट नहीं दिखाई है। फिर भारत को अरब देशों के साथ भी संबंध प्रगा़ढ बनाए रखने हैं, तो उसके लिए पूरी तरह से इजराइल के समर्थन में फिलीस्तीन के हितों के विपरीत नहीं जा सकता। नेतन्याहू भी इस बात को अच्छी तरह जानते ही होंगे। फिर भी यह पेच सुलझाना जरूरी है कि आखिर इजराइल और फिलस्तीन के रिश्तों में भारत की क्या भूमिका होगी। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री मोदी की फिलस्तीन यात्रा प्रस्तावित है। देखना है कि मोदी की इस यात्रा के क्या नतीजे निकलते हैं। बहरहाल, नेतन्याहू की खुद की छवि अपने देश में उतार पर है। उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं। वे देश की जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं इसलिए भारत जैसे विशाल देश से रिश्तों को प्रगाढ कर दोहरा फायदा लेना चाहते हैं। रक्षा उपकरण बेचने के लिए भारत जैसा ब़डा बाजार और अपने प्रतिद्वन्द्वी देशों को चिढाने के लिए भारत से दोस्ती कोई हल्का सौदा नहीं है।

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