पराधीनता का जाल चीनी लोन ऐप

पराधीनता का जाल चीनी लोन ऐप

पराधीनता का जाल चीनी लोन ऐप

चीनी मुद्रा। प्रतीकात्मक चित्रः PixaBay

जब से कोरोना महामारी आई है, दुनिया ने चीन के कई चेहरे देखे हैं। विश्व अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने के बावजूद उसे कोई पछतावा होता नहीं दिख रहा। उसने पिछले साल गलवान में जो विश्वासघात किया, उससे किसी को हैरानी नहीं चाहिए, क्योंकि धोखा और लालच चीनी शासन के हथकंडे हैं।

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इस अवधि में भारत सरकार ने चीनी विस्तारवाद को सख्ती से जवाब दिया। उसके कई ऐप पर ताला लगाया। देशवासियों ने भी चीनी माल और चीनी ऐप के बहिष्कार की मुहिम छेड़ी जो काफी असरदार साबित हुई।

इन सबके बीच चीन का एक और कुटिल चेहरा सामने आया है। तुरंत कर्ज देने के नाम पर देश के कई हिस्सों में अपना जाल बिछा चुके चीनी ऐप की घुसपैठ लोगों के बटुए में न केवल सेंध लगा रही है, बल्कि मौत भी बांट रही है।

इंटरनेट पर लुभावने विज्ञापन डालकर ये ऐप लोगों को झांसे में लेती हैं, फिर जब वसूली की बारी आती है तो उत्पीड़न का एक नया सिलसिला शुरू होता है। इससे परेशान होकर कई लोग आत्महत्या तक कर चुके हैं।

पिछले दिनों एक गांव का मामला सोशल मीडिया पर चर्चा में रहा था, जब चीनी लोन ऐप के जाल में फंसे एक व्यक्ति ने मौत को गले लगा लिया और पत्नी, बेटी, बूढ़े मां-बाप का रो-रोकर बुरा हाल था।

पुलिस ने लोन ऐप घोटाला मामले में चीनी नागरिक को दिल्ली हवाईअड्डे से उस समय पकड़ा था जब वह देश छोड़कर भाग रहा था। यहां वह लोन नेटवर्क का जिम्मा संभाल रहा था। यह तो एक झलकभर है। अगर पुलिस व जांच एजेंसियां और सख्ती से कार्रवाई करें तो ऐसे कई मामले सामने आ सकते हैं।

एलएसी पर हमारी सेना ने चीन को जिस तरह पीछे धकेला और चीनी उत्पादों पर आम जनता का गुस्सा फूटा, वह प्रशंसनीय है। वहीं इस अवधि में चीनी लोन ऐप हमारे घरों तक पहुंच गए और जेब पर डाका डालते रहे। विभिन्न रिपोर्ट बताती हैं कि दो से दस हजार तक का कर्ज मिनटों में बांट रहीं चीनी ऐप के भंवर में फंसने के बाद इनसे पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है।

मामूली रकम भी आसमान छूती ब्याज दर के साथ पहाड़ सीरीखी हो जाती है। ऊपर से ब्लैक मेल की तलवार लटकती रहती है। अगर दी गईं शर्तों का पालन करने में विफल रहते हैं तो तस्वीर सार्वजनिक कर बदनाम करने की धमकी दी जाती है।

यही नहीं, चीनी ऐप मोबाइल फोन में मौजूद कांटेक्ट लिस्ट तक पहुंच बनाकर उन संपर्कों से कर्जे का जिक्र कर दबाव डालने की कोशिश करते हैं। अब तक तेलंगाना, मध्य प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में ऐसे कई मामले सुर्खियों में आए हैं।

कोरोना काल में इन ऐप का धंधा तेजी से फलफूला है। चीनी लोन को लेकर आवाजें तो पहले भी उठी हैं लेकिन हाल के दिनों में ऐसे मामलों के जोर पकड़ने के बाद यह मांग की जाने लगी है कि चीन के इस जाल से बचने का प्रभावी उपाय अपनाया जाना चाहिए।

भौतिकवाद की चकाचौंध में हम अपने सनातन मूल्यों को भूलते जा रहे हैं, इसी का नतीजा है कि आज हम ऐसी समस्याओं से भी जूझ रहे हैं जो तीन दशक पहले नहीं थीं या बहुत कम थीं। हमारे ऋषियों ने कर्जा लेकर घी पीने को कभी प्रशंसनीय नहीं माना, बल्कि सादा जीवन, सच्चरित्र, संतोष और मितव्ययता उपदेश दिया है। सादगी का अर्थ निर्धन होना हरगिज़ नहीं है।

हमें सनातन मूल्यों और नवदृष्टि के साथ वर्तमान की समस्याओं का हल ढूंढ़ना होगा। जब आमजन सुखी होगा तो राष्ट्र सुखी होगा। अगर आमजन पराधीन, पीड़ित और त्रस्त होगा तो राष्ट्र सुखी, सुरक्षित व संपन्न नहीं होगा। चीनी कर्ज पराधीनता का ऐसा ही षड्यंत्र है। इसका ​विस्तृत रूप देखना हो तो श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह और पाकिस्तान में सीपेक परियोजना में चीन की भूमिका के बारे में जरूर पढ़ें जिन पर कई रिपोर्टें ऑनलाइन उपलब्ध हैं। चीनी शासन इस संसार का कितना कल्याण चाहता है, यह तो हम सालभर से देख ही रहे हैं।

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