आसमान से ऊंचे इरादे

आसमान से ऊंचे इरादे

आसमान से ऊंचे इरादे

धर्मगुरु से आशीर्वाद लेते हुए वेंकटेश। फोटो स्रोत: केवाई वेंकटेश का फेसबुक पेज।

.. राजीव शर्मा ..

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बेंगलूरु/रुदक्षिण भारत। कर्नाटक के केवाई वेंकटेश पद्मश्री से सम्मानित खिलाड़ी हैं। उन्होंने जिस तरह बाधाओं पर विजय पाई, वह बहुत प्रेरणादायक है। वेंकटेश के बारे में उनके प्रशंसक कहते हैं कि वे ‘आसमान से भी ऊंचे’ इरादे रखने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने जिस प्रकार पैरा-स्पोर्ट्स में शानदार प्रदर्शन किया, मेडल जीते, वह साबित करता है कि अगर इरादे चट्टान की तरह मजबूत हों तो मुश्किलें हमेशा रास्ता नहीं रोक सकतीं।

वेंकटेश को एकोंड्रोप्लासिया है, जिसकी वजह से उनका कद नहीं बढ़ा। उनकी लंबाई चार फीट दो इंच है। वेंकटेश को बचपन से शतरंज खेलने का बहुत शौक था। वे इस खेल में अनुभवी लोगों को भी शिकस्त दे देते और मुश्किल बाजी को पलट देते। बाद में उनका रुझान बैडमिंटन, वॉलीबॉल जैसे खेलों की ओर हुआ।

एक खबर से बदली दुनिया
साल 1992 की एक सुबह वेंकटेश ने अखबार में खास खबर पढ़ी जिसके बाद उनकी दुनिया ही बदल गई। उन्हें अखबार से पता चला कि भारतीय तैराक जानकी ने इंग्लिश चैनल पार करने का रिकॉर्ड बनाया है। जब जानकी की उम्र दो साल थी, उन्हें पोलियो हो गया था। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पहली बार किसी दिव्यांग द्वारा इंग्लिश चैनल तैरकर पार करने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया।

इससे वेंकटेश को बहुत प्रेरणा मिली। उन्होंने सोचा कि मैं भी कुछ कर सकता हूं, यह शारीरिक बाधा मेरा रास्ता नहीं रोक सकती। मैं कुछ करूंगा, जरूर करूंगा …। अब करीब 50 साल के वेंकटेश उस दिन को ऐसे याद करते हैं, जैसे वह कल की बात हो। उन्होंने बताया कि जानकी से प्रेरणा लेने के बाद उन्होंने खेल संबंधी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया।

दुनिया में बढ़ाया भारत का सम्मान
साल बाद 1994 में वेंकटेश ने जर्मनी में पहली अंतरराष्ट्रीय पैरालम्पिक समिति (आईपीसी) की एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद वेंकटेश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने 1999 में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित चैंपियनशिप में शॉटपुट में पहला अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीता। इससे उनका हौसला और बढ़ा।

6 पदक जीतकर चौंकाया
वेंकटेश ने 2005 में वर्ल्ड ड्वार्फ गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया और वे ऐसा करने वाले देश के पहले एथलीट थे। यहां उन्होंने कमाल ही कर दिया। वेंकटेश ने दो स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य यानी कुल छह पदक जीते। उन्होंने एथलेटिक्स और बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में भाग लिया था। इस उपलब्धि के बाद उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया।

अब वेंकटेश एक जाना-माना नाम बन चुके थे। उन्होंने पैरा-स्पोर्ट्स के विभिन्न स्वरूपों के प्रचार के लिए विभिन्न मंचों से आवाज उठाई। इसके लिए देश-विदेश की अनेक संस्थाओं ने उन्हें आमंत्रित किया ताकि ज्यादा संख्या में खेल प्रतिभाओं को अवसर मिले। वे अपने गृह राज्य की पैरा-बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव भी हैं।

खेलों को बढ़ावा दे सरकार
वेंकटेश खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के साथ कारोबार से जुड़े हुए हैं। उनका परिवार रसायनों के निर्माण का व्यवसाय करता है। वे अपनी आय से टूर्नामेंट आयोजन और खिलाड़ियों की आर्थिक सहायता करते हैं। वेंकटेश कहते हैं कि सरकारों को इन खेल गतिविधियों के लिए भी पर्याप्त राशि खर्च करनी चाहिए।

गणतंत्र दिवस पर जब लोगों को सोशल मीडिया के जरिए यह पता चला कि वेंकटेश पद्मश्री से सम्मानित हुए हैं तो उनके पास देश-विदेश से शुभकामनाएं आने लगीं। उनके एक प्रशंसक लिखते हैं, ‘केवाई वेंकटेश ने यह साबित कर दिया कि उम्र ही नहीं, लंबाई भी सिर्फ एक संख्या है जो आपकी राह नहीं रोक सकती।’

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