चीन में कोरोना
निस्संदेह अब चीन में कोरोना का तेजी से प्रसार उन डरावनी यादों को ताजा कर रहा है
आज चीन में आधी से ज्यादा आबादी पर कोरोना वायरस का खतरा मंडरा रहा है
अपनी लापरवाही और मनमानी से दुनियाभर को कोरोना महामारी से त्रस्त करने वाला चीन अब खुद के जाल में खुद ही फंसता जा रहा है। कर्मफल अटल है। साल 2020 की शुरुआत में जब चीनी शासक वर्ग भलीभांति जान चुका था कि उसके यहां पैदा हुआ वायरस पूरी दुनिया में कहर बरपा सकता है, तो भी उसने नियंत्रण के उपाय नहीं किए और न यह स्वीकारा कि उसकी करतूतों का नतीजा सब पर कितना भारी पड़ने वाला है।
निस्संदेह अब चीन में कोरोना का तेजी से प्रसार उन डरावनी यादों को ताजा कर रहा है। कोई भी विवेकशील मनुष्य नहीं चाहेगा कि कहीं भी किसी वायरस का प्रसार हो। आज चीन में आधी से ज्यादा आबादी पर कोरोना वायरस का खतरा मंडरा रहा है तो यह उसके शासकों की अदूरदर्शिता और हठधर्मिता का नतीजा है। चीनी सरकार वायरस के संबंध में टालमटोल का रवैया ही अपनाती रही है। उसने पारदर्शिता दिखाने के बजाय तथ्यों को छुपाने में तेजी दिखाई। अगर चीन उसी समय आवश्यक जानकारी सार्वजनिक कर देता तो लाखों लोगों की जान बच सकती थी और अरबों डॉलर का नुकसान नहीं होता।अब चीन में बीएफ.7 ने हाहाकार मचा रखा है। ‘द इकोनॉमिस्ट’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट तो यह कहती है कि लगभग 15 लाख चीनी नागरिकों की मौत हो सकती है। अब चीनी हुक्मरान पूरी कोशिश में हैं कि दुनिया को यही दिखाया जाए कि सबकुछ ठीक है, जबकि असल तस्वीर इससे ठीक उलट है। सरकार की कड़ी निगरानी के बावजूद जो खबरें सामने आ रही हैं, उनके मुताबिक वहां हालात कहीं ज्यादा बिगड़ गए हैं। खांसी-जुकाम की दवाइयों की किल्लत हो गई है। अस्पतालों में बेड की कमी पड़ गई है। अंतिम संस्कार स्थलों के बाहर लंबी कतारें लगी हुई हैं। दु:खद है कि चीन की आम जनता अपनी सरकार की तानाशाही के दुष्परिणाम भुगत रही है।
कोरोना की पहली लहर में कई देशों ने चीन के इस झूठ पर भरोसा कर लिया था कि वहां हालात ज्यादा नहीं बिगड़े और मृतकों की संख्या कुछ हजार तक सीमित रही। वास्तव में उस समय चीन अपने नियंत्रित मीडिया और झूठे प्रचार से यह संदेश देने में सफल हो गया कि उसकी कम्युनिस्ट पार्टी बहुत सक्षम है और वायरस का सामना करने के लिए 'चीनी मॉडल' अपनाना चाहिए। जब संकट गहराने लगा तो फर्जी राष्ट्रवाद का प्रसार करने के लिए गलवान में जानबूझकर विवाद भड़काया। उससे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को भावनात्मक लाभ भी हुआ, लेकिन अब हालात वैसे नहीं हैं।
इस बार चीन के कई इलाकों में कोरोना वायरस अधिक घातक सिद्ध हो रहा है। शून्य कोविड नीति के कारण जनता भड़क उठी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, वह सब अप्रत्याशित था। चीन ने इस बार भी फर्जी राष्ट्रवाद की वही पुरानी चाल चली, लेकिन वह बुरी तरह विफल हो गई। तवांग में भारतीय सेना ने पीएलए की जिस तरह पिटाई की, उससे शी जिनपिंग की छवि को धक्का लगा है।
अगर चीन भारत और तमाम देशों के साथ समन्वय की नीति अपनाता तो इससे कोरोना महामारी पर निर्णायक विजय पाने में आसानी होती। निस्संदेह मानवता की रक्षा के इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य में भारत भी उसके साथ अपने वैज्ञानिक अनुभव साझा करता, लेकिन चीन ने हमेशा अक्खड़ता और उद्दंडता ही दिखाई। पश्चिमी देश भी चीन के इस रवैए को देख रहे हैं, खतरे को भांप रहे हैं। वे चाहते हैं कि चीन पर निर्भरता कम से कम की जाए। चीन का कारोबारी समुदाय अपनी कम्युनिस्ट पार्टी से परेशान है। जैक मा ने सरकारी नीतियों की जरा-सी आलोचना की तो उनके साथ जो कुछ हुआ, वह सबने देखा।
भारत को चाहिए कि वह उन उद्योगों को आमंत्रित करे, आकर्षक एवं सरल नीतियां बनाए। भारत में पर्याप्त सामर्थ्य है। अगर उद्योग जगत ड्रैगन के पंजे से छूटकर भारत में अपना बसेरा बना ले तो दुनिया के लिए चीन की तानाशाही और मनमानी का सामना करने में आसानी हो जाए।