शांति का शत्रु
स्पष्ट रूप से चीन की कथनी और करनी में अंतर है
आज भारत समेत दुनिया के कई देश बढ़ते आतंकवाद से चिंतित हैं
चीन ने जैश-ए-मोहम्मद के कुख्यात आतंकवादी अब्दुल रऊफ अजहर को काली सूची में डालने के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के प्रस्ताव का विरोध कर एक बार फिर साबित कर दिया कि वह शांति का शत्रु है। यूं तो चीन एलएसी पर 'शांति की स्थापना' के लिए भारत से बातचीत करता रहता है, जिसके तहत उसके अधिकारी लच्छेदार भाषण देते हैं, लेकिन दूसरी ओर वह आतंकवादियों को बचाने के लिए पूरा जोर लगा देता है।
स्पष्ट रूप से चीन की कथनी और करनी में अंतर है। आज भारत समेत दुनिया के कई देश बढ़ते आतंकवाद से चिंतित हैं और इस पर नियंत्रण के लिए कई उपाय कर रहे हैं। वहीं, चीन खूंखार आतंकवादियों पर शिकंजा कसने में अड़ंगे डाल रहा है। यह कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा कि पाकिस्तान के जो आतंकवादी अफगानिस्तान और भारत में नापाक हरकतों को अंजाम देने की कोशिश करते हैं, उनकी बंदूकों में गोली चीन के खजाने से ही आ रही है।बीजिंग की रजामंदी से ही पाकिस्तानी आतंकवादियों को बारूद मिल रहा है और वे निर्दोष लोगों की जान ले रहे हैं। भारत तो चाहता है कि अब्दुल रऊफ अजहर जैसे आतंकवादियों को काली सूची में डाला जाए। इससे दुनिया अधिक सुरक्षित होगी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र में उसके प्रस्ताव पर आपत्ति जताने के लिए चीन पहुंच जाता है।
जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर का भाई अब्दुल रऊफ अजहर कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह कई बड़ी आतंकवादी घटनाओं की साजिश रचने और उन्हें अंजाम दिलाने में शामिल रहा है। इनमें इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी 814 का अपहरण, साल 2001 में संसद पर हमला, साल 2016 में पठानकोट में वायुसेना अड्डे पर हमला जैसी घटनाएं शामिल हैं।
ऐसा पहली बार नहीं है, जब चीन ने आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की भारतीय कोशिशों में अड़ंगा डालने का काम किया। उसने लश्कर-ए-तैयबा के अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रयासों को भी निष्फल करना चाहा था। साल 2019 में भारत के प्रयासों से मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया गया था, लेकिन उसे बचाने के लिए चीन ने बहुत दांव चले थे।
साल 2009 में भारत ने मसूद अजहर को आतंकवादी सूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया था। इसके बाद अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने भी क्रमश: 2016 और 2017 में मिलकर ऐसा प्रयास किया था, लेकिन इन सभी मौकों पर चीन ने प्रतिबंध समिति में मंजूरी के लिए भारत के प्रस्ताव को बाधित किया था। चीन पाकिस्तान में पलने वाले आतंकवादियों को बचाने की हर मुमकिन कोशिश इसलिए करता है, क्योंकि वह जानता है कि इनका रुख भारत की ओर होगा।
अगर ये भारत में घुसपैठ कर, खासतौर से जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम देंगे तो इससे भारत को नुकसान होगा। फिर सैन्य खर्च बढ़ेगा। दुनिया का इस ओर ध्यान जाएगा तो पर्यटक यहां आने से डरेंगे, निवेश में कमी आएगी। इस तरह चीन अपना आर्थिक दबदबा बनाए रखने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है।
पाकिस्तान की आतंकवादी मशीनरी में ईंधन डालने वाला चीन खुद की आंतरिक सुरक्षा के लिए बेहद चौकन्ना रहता है। वह अपनी जमीन पर आतंकवाद, अलगाववाद को पनपने नहीं देता। इंटरनेट पर कड़ी निगरानी रखने वाले इस देश के खुफिया अधिकारियों को अगर किसी व्यक्ति के कट्टरपंथी होने की जरा भी भनक लग जाती है तो उसके साथ बहुत कठोरता का व्यवहार किया जाता है। उसे अनिश्चित काल के लिए कैद कर लिया जाता है।
ऐसे कई लोग आजतक लापता हैं। वे कहां गए, इसका जवाब कोई अधिकारी नहीं देता। हालांकि चीन इन आरोपों का खंडन करता है, लेकिन विभिन्न मानवाधिकार संगठन दावा करते हैं कि ऐसे लोगों को या तो लंबी अवधि के लिए जेल में डाल दिया जाता है या चुपचाप मृत्युदंड दे दिया जाता है। चीन को स्मरण रखना चाहिए कि वह आज जिन आतंकवादियों का 'रक्षक' बनकर खड़ा है, भविष्य में वे उसके लिए भारी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं।