न्यूज़ चैनलों पर बयानों की मारधाड़: प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता आज भी कायम

लोगों ने एक बार फिर प्रिंट मीडिया की ओर लौटना शुरू कर दिया है

न्यूज़ चैनलों पर बयानों की मारधाड़: प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता आज भी कायम

Photo: PixaBay

बाल मुकुन्द ओझा
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देश में कुकुरमुत्तों की तरह न्यूज़ चैनलों की बाढ़ सी आ गई है| इन चैनलों पर प्रतिदिन देश में घटित मुख्य घटनाओं और नेताओं की बयानबाजी पर टीका टिप्पणियों को देखा और सुना जा सकता है| राजनीतिक पार्टियों के चयनित प्रवक्ता और कथित विशेषज्ञ इन सियासी बहसों में अपनी अपनी पार्टियों का पक्ष रखते है| न्यूज़ चैनलों पर इन दिनों जिस प्रकार के आरोप प्रत्यारोप और नफरती बोल सुने जा रहे है उससे लोकतंत्र की धज्जियॉं उड़ते देखा जा सकता है| बड़े बड़े और धमाकेदार शीर्षकों वाली इन बहसों को सुनकर किसी मारधाड़ वाली फिल्मों की यादें जाग्रत हो उठती है| एंकर भी इनके आगे असहाय नज़र आते है| कई बार छीना झपटी और मारपीट की नौबत आ जाती है| सच तो यह है जब से टीवी न्यूज चैनलों ने हमारी जिंदगी में दखल दिया है तब से हम एक दूसरे के दोस्त कम दुश्मन अधिक बन रहे है| समाज में भाईचारे के स्थान पर घृणा का वातावरण ज्यादा व्याप्त हो रहा है| बहुत से लोगों ने मारधाड़ वाली और डरावनी बहसों को न केवल देखना बंद कर दिया है अपितु  टीवी देखने से ही तौबा कर लिया है| लोगों ने एक बार फिर इलेक्ट्रॉनिक के स्थान पर प्रिंट मीडिया की ओर लौटना शुरू कर दिया है| प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता अधिक प्रामाणिक समझी जा रही है| प्रबुद्ध वर्ग का कहना है प्रिंट मीडिया आज भी अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन कर रहा है|

इस समय देश के न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर नफरत और घृणा के बादल मंडरा रहे है| देश में हर तीसरे महीने कहीं न कहीं चुनावी नगाड़े बजने शुरू हो जाते है| इस समय हरियाणा सहित चार राज्यों में चुनाव होने वाले है| चुनावों के आते ही न्यूज़ चैनलों की बांछें खिल जाती है| चुनावों पर गर्मागरम बहस शुरू हो जाती है| राजनीतिक दलों के नुमाइंदे अपने अपने पक्ष में दावे प्रतिदावे शुरू करने लग जाते है| इसी के साथ ऐसे ऐसे आरोप और नफरत पैदा करने वाली दलीले दी जाने लगती है कि कई बार देखने वालों का सिर शर्म से झुक जाता है| यही नहीं देश में दुर्भाग्य से कहीं कोई घटना दुर्घटना घट जाती है तो न्यूज़ चैनलों पर बढ़चढ़कर ऐसी ऐसी बातों की झड़ी लग जाती है जिन पर विश्वास करना नामुमकिन हो जाता है| इसीलिए लोग इलेक्ट्रॉनिक के स्थान पर प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता को अधिक प्रमाणिक मानते है| इसी कारण लोगों ने टीवी चैनलों पर होने वाली नफरती बहस को देखनी न केवल बंद कर दी अपितु बहुत से लोगों ने टीवी देखने से ही तौबा कर ली|

नफरत और घृणा के इस महासागर में सभी सियासी पार्टियां डुबकी लगा रही है| न्यूज चैनलों पर विभिन्न सियासी दलों के प्रतिनिधि जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते है उन्हें देखकर लगता नहीं है की यह गॉंधी, सुभाष, नेहरू, लोहिया और अटलजी का देश है| देश की सर्वोच्च अदालत कई बार इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर नियामकीय नियंत्रण की कमी पर अफसोस ज़ाहिर कर चुकी है| सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के भाषण और टीवी चैनलों को नफरती भाषण फैलाने का जिम्मेदार ठहराया है| सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच मामले में कई बार टेलीविजन चैनलों को जमकर फटकार लगाई| सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टेलीविजन चैनल समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं| शीर्ष अदालत ने कहा कि टीवी चैनल ऐसे एजेंडे से संचालित होते हैं, जो विभाजन पैदा करते हैं| सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टीवी चैनल सनसनीखेज न्यूजों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं और अपने धनदाताओं (मालिकों) के आदेश के अनुसार काम करते हैं| 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नफरत फैलाने वाली बातें एक बड़ा खतरा  हैं और भारत में  स्वतंत्र एवं संतुलित प्रेस  की जरूरत है| सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि एंकरों और न्यूज़ चैनल के प्रबंधकों के खिलाफ कार्रवाई हो तो सब लाइन पर आ जाएंगे| शीर्ष अदालत ने कहा कि आजकल सब कुछ टीआरपी  से संचालित होता है और चैनल एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं तथा समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं|

गंगा जमुनी तहजीब से निकले भारतीय घृणा के इस तूफान में बह रहे हैं| विशेषकर नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद घृणा और नफरत के तूफानी बादल गहराने लगे है| हमारे नेताओं के भाषणों, वक्तव्यों और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सुचिता के स्थान पर नफरत, झूठ, अपशब्द, तथ्यों में तोड़-मरोड़ और असंसदीय भाषा का प्रयोग धड़ल्ले से होता देखा जा सकता हैं| हमारे नेता अब आए दिन सामाजिक संस्कारों और मूल्यों को शर्मसार करते रहते हैं| स्वस्थ आलोचना से लोकतंत्र सशक्त, परंतु नफरत भरे बोल से कमजोर होता है, यह सर्व विदित है| आलोचना का जवाब दिया जा सकता है, मगर नफरत के आरोपों का नहीं| आज पक्ष और विपक्ष में मतभेद और मनभेद की गहरी खाई है| यह अंधी खाई हमारी लोकतान्त्रिक परम्पराओं को नष्ट भ्रष्ट करने को आतुर है| देश में व्याप्त नफरत के इस माहौल को खत्म कर लोकतंत्र की ज्वाला को पुर्नस्थापित करने की महती जरूरत है और यह तभी संभव है जब हम खुद अनुशासित होंगे और मर्यादा की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन नहीं करेंगे|

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