हिंदी में डॉक्टरी की पढ़ाई का फैसला अच्छा, पर चुनौतियां भी कम नहीं

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी कहा गया है कि छात्रों को शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिलाई जाए

हिंदी में डॉक्टरी की पढ़ाई का फैसला अच्छा, पर चुनौतियां भी कम नहीं

हिंदी मीडियम से पढ़े लाखों स्टूडेंट्स कड़ी मेहनत करके नीट की परीक्षा देते हैं

राजेश जैन
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अब राजस्थान में भी डॉक्टरी की पढ़ाई हिंदी मीडियम से होगी| फिलहाल जोधपुर के सम्पूर्णानंद और बाड़मेर मेडिकल कॉलेज में हिंदी में पढ़ाएंगे| इन दोनों मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों को विकल्प के आधार पर अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों माध्यमों में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल सकेगा| शिक्षाशास्त्रियों का एक वर्ग लंबे समय से हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं में चिकित्सा शिक्षा पर जोर देता आया है| इनका मानना है मातृभाषा में चिकित्सा की पढ़ाई करने वालों में मरीजों के साथ संवाद में आत्मविश्वास ज्यादा होता है| चीन, रूस, जापान, जर्मनी, फ्रांस, किर्गिस्तान, फिलीपींस आदि देशों का हवाला भी दिया जाता है, जहां स्थानीय भाषाओं में चिकित्सा की पढ़ाई होती है| कहा  जाता है कि ये लोग अपनी भाषा में काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं|

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० में भी कहा गया है कि छात्रों को शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिलाई जाए| इसमें उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा अंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं में भी मुहैया कराए जाने की बात कही गई है| ऐसे में मेडिकल के कोर्स को हिंदी में ढालने का काम चल रहा है| इसी के मद्देनजर मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बाद अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरकार ने भी मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए घोषणा की है| यहां मौजूदा एकेडमिक सेशन २०२४-२५ से एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में शुरू होगी| हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई कितनी कारगर और उपयोगी हो पाएगी,  इस बारे में चिकित्सा जगत में दो तरह के विचार हैं| एक ओर कहा जा रहा है कि आधी-अधूरी तैयारी के साथ उठाया कदम परेशानी खड़ी करेगा| शिक्षक हिंदी में पढ़ने के लिए प्रशिक्षित नहीं है| हिंदी मीडियम की अनुवादित किताबें भी परेशानी का सबब बन सकती है जबकि इस मुहिम से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि यह शुरुआती कदम है|  इसमें आगे सुधार होगा| फिलहाल इस शुरुआत का स्वागत किया जाना चाहिए|

युवाओं को होगा फायदा

सरकारी पक्ष का कहना है कि हिंदी मीडियम से पढ़े लाखों स्टूडेंट्स कड़ी मेहनत करके नीट की परीक्षा देते हैं| कई पास भी हो होते है पर उनको मेडिकल कॉलेज में अचानक अंग्रेजी भाषा में पढ़ना पड़ जाता है| ऐसे में कुछ बीच में ही मेडिकल की पढ़ाई ही छोड़ देते हैं| सरकार के इस कदम से उन युवाओं की बड़ी साध पूरी होगी जो डॉक्टर तो बनना चाहते हैं पर, अंग्रेज़ी पर पकड़ न होने के कारण उनके सपनों पर कुठाराघात हो जाता है| अब उन्हें सिलेबस को पढ़ने और समझने में आसानी होगी| एक फायदा यह भी होगा कि हिंदी माध्यम से पढ़े-लिखे डॉक्टर हिंदी पट्टी के ग्रामीण इलाकों के मरीजों से भी अच्छी तरह जुड़ाव महसूस कर सकेंगे| उनकी बातें ठीक से समझेंगे, तकलीफ ठीक से समझेंगे, तो इलाज करने में भी आसानी हो जाएगी|

चुनौतियां भी कम नहीं

यह तय है कि देश ने एक बड़ा और क्रांतिकारी कदम उठाया है| लेकिन रातोंरात पूरा सीन बदलने की उम्मीद नहीं की जा सकती| अभी शुरुआती कदम उठाए गए हैं, आगे आने वाली चुनौतियों से पार पाना बाकी है| हिन्दी में मेडिकल शिक्षा को लेकर कई चुनौतियां हैं जैसे हिंदी में एमबीबीएस की डिग्री हिंदी भाषी इलाके के बाहर कितनी मान्य होगी| मेडिकल शब्दावली के अनुवाद से कन्फ़्यूज़न हो सकता है| अगर कोई छात्र पीजी कोर्स के लिए दूसरे देश में जाएगा, तो वहां पढ़ाई कर पाने में दिक्कत आ सकती है|  

पाठयक्रम के अनुवाद की चुनौती

मेडिकल शिक्षा का सारा पाठयक्रम, अच्छी किताबें अंग्रेजी में हैं| यह प्रयोग नया है इसलिए हिंदी में मेडिकल की ज्यादा किताबें उपलब्ध नहीं हैं| कई मेडिकल टर्म का ट्रांसलेशन नहीं हो सका है| जैसे फीमर हड्डी को हिंदी में फीमर ही कहा जा सकता है, ऐसे हजारों शब्द हैं| ऐसे में शुद्ध हिंदी के शब्द उलझन का कारण बन सकते हैं| जरूरी है कि सबसे पहले हिंदी में मेडकिल और साइंटिफिक शब्द बनें| अधिकांश ऐसे अंग्रेजी नाम, जिनके कठिन हिंदी नाम होते हैं, उनमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए| उदाहरण के तौर पर लीवर, किडनी, स्पाइन, प्लाज्मा, हार्मोन्स, एंजाइम, जेनेटिक्स, एलर्जी, पैथोलॉजी, कीमोथेरेपी, टॉक्सिकोलॉजी, कार्डियो वैस्कुलर सिस्टम, अपर लिंब, एब्डोमेन, पेल्विस, ब्रेन जैसे शब्दों के अनुवाद की कोशिश नहीं होनी चाहिए| इसके अलावा चिकित्सा जगत से जुड़े शिक्षकों को अभी हिंदी मीडियम में पढ़ाने की ट्रेनिंग नहीं दी गई है| पहले इसके लिए ट्रेनिंग देनी होगी और जब शिक्षक ट्रेनिंग के बाद कॉन्फिडेंट हो जाए, उसके बाद ही हिंदी में एमबीबीएस कोर्स उचित है|

उच्च शिक्षा और रिसर्च में होगी मुश्किल

अभी भी मेडिकल फील्ड में उच्च शिक्षा अंग्रेजी में ही है और दुनिया भी अंग्रेजी में ही उच्च शिक्षा मेडिकल में चला रही है| जिस तरह एमबीबीएस के लिए एंट्रेंस टेस्ट पास करना होता है, उसी तरह पीजी कोर्स के लिए भी भारी-भरकम परीक्षा पास करनी होती है| देशभर में पीजी कोर्स के लिए सीटें भी सीमित ही हैं| ऐसे में हिंदी माध्यम से एमबीबीएस करने वाले को अगर दक्षिण भारत के किसी कॉलेज में दाखिला लेना पड़ गया, तो उनकी आगे की पढ़ाई किस भाषा में होगी? हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़, तमिल, मलयालम या कुछ और?

पूरा मेडिकल सेक्टर बड़ी तेजी से बदल रहा है| हर रोज नई-नई रिसर्च और जानकारियां सामने आ रही हैं| हाई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और पूरा सिस्टम तेजी से अपडेट हो रहा है| ये सब कुछ ’ग्लोबल लैंग्वेज’ अंग्रेजी में हो रहा है| मना कि जो स्टूडेंट पांच साल में डॉक्टर बनेगा, माना वो हिंदी में पीजी भी कर लेगा, लेकिन फिर वो कांफ्रेंस कैसे प्रजेंट करे करेगा, थीसिस कैसे करेगा| हिंदी मीडियम से पढ़े डॉक्टर एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद फेलोशिप, रिसर्च या नौकरी के लिए विदेश कैसे जा सकेंगे? आशंका यह भी है कि कहीं हिंदी उन्हें एक खास भौगोलिक सीमा में बांध न दे|

दूसरे देशों में प्रैक्टिस करने में आएगी दिक्कत

जो अंग्रेजी के पक्ष में हैं, उनका तर्क है कि अभी मेडिकल का सिलेबस पूरी दुनिया में एक जैसा है, क्योंकि मानव शरीर की रचना एक जैसी ही है| इस वजह से इसका मीडियम भी सबके लिए अंग्रेजी ही रहे, तो पूरी दुनिया को सहूलियत होगी|  चीन जापान और रूस जैसे देशों में वहां की भाषा में मेडिकल की पढ़ाई होती है| लेकिन इन देशों की दुनिया भर के मेडिकल फील्ड में कोई बेहतर छवि नहीं है| ऐसे में बड़ी चिंता यह भी है कि हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने वाला डॉक्टर कहीं स्थानीय स्तर पर सिमट कर ना रह जाए| अब तक  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय डॉक्टरों का दर्जा उन तमाम देशों में जहां उनकी भाषा में मेडिकल की पढ़ाई होती है, से ऊपर रहा है लेकिन हिंदी मीडियम में पढ़ने वाले छात्र इस भाषा में कंफर्टेबल हो जाएंगे, जिससे उन्हें अंग्रेजी भाषा में पढ़ने या भविष्य में दूसरे देशों में प्रैक्टिस में दिक्कत होगी| यही नहीं, हिंदी मीडियम में पढ़ाई करने वाले छात्रों को भारत में ही कई जगहों पर दिक्कत हो सकती है| यहां तक कि गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी काम करने और काम मिलने में कठिनाई हो सकती है|

बहरहाल, मेडिकल की किताबें हिंदी में आ जाने से ऐसे छात्रों का हौसला बढ़ेगा, जिन्हें अंग्रेजी माध्यम की किताबें बोझ लगती हैं| अगर मेडिकल टर्म या शरीर के अंगों के प्रचलित नामों को जस का तस छोड़ दिया जाए और बाकी बातों को हिंदी में समझाकर लिख दिया जाए, तो फायदा हो सकता है| हिंदी मीडियम वाले डॉक्टर को फिलहाल किसी विदेशी एक्सपर्ट के सेमिनार में जाकर नई चीजों को सुनने-समझने में कठिनाई हो सकती है| लेकिन यह समस्या भी दूर होगी, जब हिंदी मीडियम वाले खुद ही एक्सपर्ट न बन जाएंगे| ऐसे में हिंदी मीडियम वालों से बड़ी हिम्मत और सब्र रखे जाने की दरकार होगी| कुल मिलाकर, अपनी भाषा में मेडिकल शिक्षा हमारे लिए गर्व की बात है, हर नई चीज को अपनाने में शुरू-शुरू में दिक्कत होती है| लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हारकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाया जाए| हिंदी मीडियम वालों को अपने कदम मजबूती से टिकाए रखने की जरूरत है| यह उपक्रम भाषा के तौर पर हिंदी की यात्रा में ऐतिहासिक बदलाव लाने वाला भी साबित होगा| इससे हिंदी के भावी स्वरूप पर बड़ा पड़ेगा|

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