काकड़ के सिर आफत

पाक में महंगाई, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता ... के कारण लोग खासे मायूस हैं

काकड़ के सिर आफत

ऐसा लगता है कि काकड़ के शपथग्रहण करते ही पाक के ग्रह-नक्षत्र और कुपित हो गए हैं

पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकड़ के लिए यह कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा कि मूंड मुंडाते ही ओले पड़ गए! वे सूट-बूट पहनकर (कार्यवाहक) प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे ही थे कि आफतों की वह बौछार शुरू हो गई, जिसे देखकर वे उस घड़ी को कोस रहे होंगे, जब इस पद की जिम्मेदारी लेने को तैयार हुए थे। 

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पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ उनकी राह में इतने गड्ढे खोदकर गए हैं, जिनमें सरकार की गाड़ी हिचकोले खा रही है। अगर काकड़ इस गाड़ी की चाबी फौज को सौंपकर 'निकल' जाएं तो इसमें अचंभे की कोई बात नहीं होगी! इस समय उन पर जनता का भारी दबाव है। वहां बिजली के बिल इतने ज्यादा आए हैं कि कई लोग तो आत्महत्या कर चुके हैं। जिनके घर में दो बल्ब और दो पंखे हैं, उन्हें भी पचास-पचास हजार रुपए के बिल थमाए गए हैं। मध्यम वर्गीय और निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों के एक लाख से तीन लाख रुपए तक के बिल आए हैं।

पाकिस्तानी जनता चाहती है कि उसे राहत मिले, लेकिन काकड़ टालमटोल का रवैया अपना रहे हैं। उनका कहना है कि महंगाई कोई मुद्दा नहीं है, यह तो मीडिया ने शोर मचा रखा है। काकड़ के इस रवैए को फ्रांस में 18वीं सदी की रानी मेरी आंतवानेत से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि उसने भूखे किसानों को सलाह दी थी कि अगर आपके पास रोटी नहीं है तो केक खाएं! इससे जनाक्रोश की ऐसी चिंगारी भड़की थी, जिसे दुनिया आज भी याद करती है। 

काकड़ को भी सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि आज पाकिस्तान में हालात विस्फोटक हो चुके हैं। हालांकि वहां किसी क्रांति की उम्मीद न के बराबर है, लेकिन जब मामला बर्दाश्त से बाहर निकल जाएगा तो वही सबकुछ देखने को मिल सकता है, जो श्रीलंका में हुआ था। श्रीलंका की जनता (तुलनात्मक रूप से ज्यादा) शिक्षित है, इसलिए वहां हालात जल्द काबू में आ गए। अगर पाकिस्तान में ऐसा हुआ तो जनता वह तबाही मचाएगी कि न तो काकड़ कुछ कर पाएंगे और न ही सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर।

पाक में महंगाई, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता ... के कारण लोग खासे मायूस हैं। अब तो गिलगित-बाल्टिस्‍तान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें लोग उन्हें भारत से जोड़ने की मांग कर रहे हैं। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। गिलगित-बाल्टिस्‍तान समेत पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) में कई जगह पाक सरकार और फौज के खिलाफ प्रदर्शनों में भारत के बेहतर हालात का हवाला दिया जा चुका है, लेकिन इस बार जनता बहुत मुखर होकर यह मांग कर रही है कि उसे भारत में मिलना है, लिहाजा दरवाजे खोल दिए जाएं। 

ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं हो रहा, क्योंकि भारत में खाने-पीने की चीजें सस्ती हैं और बिजली के बिल कम आते हैं, बल्कि अब पीओके की जनता का पाकिस्तान से मोहभंग हो गया है। उसे पाक ने जिस कथित आज़ादी के सपने दिखाए, उनका हकीकत से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। वह 'आज़ादी' असल में ग़ुलामी है। जब (पाकिस्तानी) पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में हालात बदतर हैं तो पीओके की सुध कौन लेगा? पीओके के लोग तो पाकिस्तान के लिए पराए हैं। 

पाक जानता है कि एक दिन यह इलाका उसके हाथ से जाएगा, इसलिए मूलभूत सुविधाओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। यहां अक्टूबर 2005 में आए भूकंप के दौरान स्कूलों-अस्पतालों की जो दीवारें क्षतिग्रस्त हो गई थीं, उनकी आज तक मरम्मत नहीं कराई गई। इस सूरत में पाक के पास एक ही दांव बचता है, जिसे आजमाकर वह लोगों को एकजुट करने की कोशिश करता है। वह है- भारत से दुश्मनी। यही 'माल' उसकी फौज बेचती रही है। 

उसके सैन्य अधिकारियों ने करोड़ों डॉलर बटोरकर आम पाकिस्तानी की आंखों पर आतंकवाद की पट्टी बांधे रखी। अब वे ही आतंकवादी फौज पर धावा बोल रहे हैं। हाल में खैबर पख्तूनख्वा के बन्नू जिले में पाक फौज पर एक आतंकवादी ने आत्मघाती हमला कर 9 जवानों को मार गिराया था। 

इसी तरह उत्तरी वजीरिस्तान और खैबर जिलों में आतंकवाद की घटनाओं में फौज के एक मेजर समेत तीन जवानों की जान चली गई थी। (पाकिस्तानी) पंजाब प्रांत में आईएसआईएस की पांच महिला आतंकवादी गिरफ्तार हुई हैं। ऐसा लगता है कि काकड़ के शपथग्रहण करते ही पाक के ग्रह-नक्षत्र और कुपित हो गए हैं। ऐसे में वे आम चुनाव तक टिके रह जाएं, यही उनकी बड़ी 'कामयाबी' होगी।

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