डिजिटल भुगतान: बनेंगे नए कीर्तिमान

युवा पीढ़ी सभी प्रकार के डिजिटल भुगतान साधनों को अपनाने में अग्रणी है

डिजिटल भुगतान: बनेंगे नए कीर्तिमान

सरकार इस माध्यम को अधिक सुरक्षित बनाए, साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसे

आज भारत डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में जो कीर्तिमान बना रहा है, एक दशक पहले शायद ही किसी ने इसका अनुमान लगाया होगा। यह तो सबको दिख रहा था कि देश में इंटरनेट सुविधाओं का विस्तार होगा तो डिजिटल भुगतान बढ़ेगा, लेकिन इतना बढ़ेगा, यह अकल्पनीय था! अब एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया जाना उम्मीदों को और बढ़ाता है कि भारत में साल 2030 तक खुदरा डिजिटल भुगतान दोगुना होकर 7,000 अरब डॉलर हो जाएगा। याद करें, साल 2016-17 में कुछ 'बुद्धिजीवी' यह कहते थे कि भारत में डिजिटल भुगतान कामयाब नहीं हो सकता, क्योंकि गांव-देहात में लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है, इतने संसाधन नहीं हैं। अब सुदूर इलाके में बसी किसी ढाणी में भी लोग डिजिटल भुगतान करते मिल जाएंगे। उन्हें यह सिखाने के लिए विदेश से वैज्ञानिक या विशेषज्ञ नहीं आए थे। लोग धीरे-धीरे खुद ही सीख गए। जनता-जनार्दन की इस ताकत से दुनिया के बड़े-बड़े अर्थशास्त्री अचंभित हैं। जब वे यूट्यूब पर देखते हैं कि भारत में कुछ किलोग्राम फल-सब्जी की दुकान लगाकर बैठा व्यक्ति भी डिजिटल भुगतान स्वीकार करता है तो उन्हें मानना पड़ता है कि हिंदुस्तानियों ने इस क्षेत्र में ऐसे आयाम स्थापित कर दिए हैं, जिनसे दुनिया बहुत कुछ सीख सकती है। डिजिटल भुगतान ने भारत की छवि को बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज दुनियाभर में यूपीआई के चर्चे हैं। उसकी स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। हाल में इस संबंध में जितने भी अध्ययन हुए हैं, वे कीर्ने और अमेज़न पे के उक्त अध्ययन पर ही मुहर लगाते प्रतीत होते हैं, जिसके मुताबिक, भारत में डिजिटल भुगतान तेजी से बढ़ रहा है और यह लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है।

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इस अध्ययन की ये पंक्तियां भारत में डिजिटल भुगतान के भविष्य को बयान करती हैं - 'सर्वेक्षण में शामिल 90 प्रतिशत लोगों ने ऑनलाइन खरीदारी करते समय डिजिटल भुगतान को प्राथमिकता दी ... युवा पीढ़ी सभी प्रकार के डिजिटल भुगतान साधनों को अपनाने में अग्रणी है। पुरुष और महिलाएं, दोनों ही अपने लगभग 72 प्रतिशत लेन-देन में डिजिटल भुगतान का उपयोग करते हैं, जो लैंगिक समानता को दर्शाता है।' डिजिटल भुगतान के तौर-तरीके एक दशक में ही ऐसा बदलाव लाने में सक्षम रहे हैं कि अतीत की कई 'समस्याएं' अब सिर्फ इतिहास की किताबों में देखने को मिलेंगी। किसी समय गैस सिलेंडर बुक करवाने का मतलब था- आधे से लेकर एक दिन तक इसी में बीत जाना। अब डिजिटल भुगतान के बाद कुछ ही घंटों में सिलेंडर घर पर मिल जाता है। नकदी निकालने या जमा कराने के लिए बैंक की कतारों में लगने वाले समय को कौन भूल सकता है? अब डिजिटल भुगतान ने ज़्यादातर जगहों पर नकदी की ज़रूरत खत्म कर दी। बड़े शहरों से लेकर कस्बों और गांवों तक बिजली का बिल जमा कराने की पुरानी व्यवस्था बहुत कष्टदायक थी। लंबी-लंबी कतारों में खड़े लोग अपनी बारी का इंतजार करते रहते थे। इससे बुजुर्गों को कई तकलीफों का सामना करना पड़ता था। बिल जमा करने वाले कर्मचारी के लिए आखिर में जोड़ मिलाना किसी इम्तिहान से कम नहीं होता था। अगर वह मिल जाए तो इकट्ठी नकदी को गांव से शहर ले जाना बहुत चुनौतीपूर्ण होता था। ऐसे भी मामले आए थे, जब घात लगाकर बैठे अपराधियों ने पूरी रकम उड़ा ली! डिजिटल भुगतान ने इन सभी समस्याओं का समाधान कर दिया। आज भी कुछ जगह लोग परंपरागत ढंग से बिल जमा कराते हैं, वहां भविष्य में तस्वीर जरूर बदलेगी। रेलवे स्टेशन, मेट्रो, सिनेमा घर, जहां टिकट लेने और नकदी संभालने में ही काफी ऊर्जा खर्च हो जाती थी, वहां डिजिटल भुगतान ने नई क्रांति की शुरुआत कर दी, जिसके कामयाब होने में किसी को शक नहीं है। बस, सरकार इस माध्यम को अधिक सुरक्षित बनाए, साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसे। उसके बाद जनता-जनार्दन इसे नई बुलंदियों तक ले जाएगी।

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