धर्म के बिना धरा पर रहना असंभव है: आचार्य विमलसागरसूरी
'धर्म दयालुता और मानवता की शिक्षा देता है'

'अज्ञानी लाेग भी धर्मक्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगे हैं'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के विजयनगर स्थित वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में साेमवार काे उपस्थितजनाें काे मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि जैन श्रावकाचार चरित्र प्रधान है।
साधुओं और श्रावकाें काे धर्मशास्त्राें की आज्ञा के अतिरिक्त साेचने और जीने का अधिकार नहीं है। वर्तमान युग में धर्म की परंपराओं काे बदलना समाज के लिए घातक है। ज्याें-ज्याें हम धर्म की व्यवस्थाओं में परिवर्तन करते जाएंगे, त्याें-त्याें लाेगाें का धर्म से विश्वास उठता जाएगा।समाज व धर्म के तथाकथित नेता धीरे-धीरे पुरानी परंपराओं काे बदलते जा रहे हैं। अज्ञानी लाेग भी धर्मक्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगे हैं। यह सब समाज के भविष्य के दृष्टिकाेण से बहुत नुकसानदेह है।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि धर्म के बिना धरा पर रहना असंभव है। नास्तिक मनुष्य भी धार्मिक लाेगाें के कारण इस दुनिया में जीवनयापन कर रहे हैं। धर्म सत्य कहता है। वह दयालुता और मानवता की शिक्षा देता है। वह अन्याय काे दूर कर न्याय का संदेश देता है। भारतीय संस्कृति का यह प्राणतत्व है। शास्त्राें ने कहा है कि जब धर्म नहीं हाेता तब समाज, सभ्यता, शिक्षा, संस्कार और सदाचार कुछ भी नहीं हाेता। आगे भी ज्याें-ज्याें धर्म का नाश हाेगा, त्याें-त्याें पृथ्वी का प्रलय हाेगा।
मंगलवार काे आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी, गणि पद्मविमलसागरजी एवं सहवर्ती मुनिगण तीन दिन के प्रवास पर वीवी पुरम स्थित सिमंधर शांतिसूरी जैन संघ में पहुंचेंगे।
About The Author
Related Posts
Latest News
