भारत कैसे बनेगा विश्वगुरु?
समाज और सरकार उचित माहौल तो उपलब्ध कराएं

इस दौड़ में हम कहां हैं?
राज्यसभा में उठाया गया यह मुद्दा कि 'भारत की बड़ी आबादी एआई के कार्यबल का हिस्सा है, फिर भी इस क्षेत्र में देश को जितनी प्रगति करनी चाहिए थी, वह नहीं कर पा रहा है', अत्यंत प्रासंगिक है। इसके साथ ही सभापति जगदीप धनखड़ का यह कहना उम्मीद जगाता है कि 'विश्वगुरु तो भारत ही होगा।' अगर हमारा देश एआई में खूब प्रगति करे, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करे तो सबके लिए आनंद का विषय होगा। सवाल है- यह कैसे होगा? जब तकनीकी क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की बात आती है तो अमेरिका का जिक्र सबसे पहले होता है। इन दिनों 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) के चैटबॉट ग्रोक ने तहलका मचा रखा है। पिछले दिनों चीनी चैटबॉट डीपसीक बहुत चर्चा में रहा था, लेकिन तकनीकी मैदान में अमेरिका बहुत आगे है। लगभग 34 करोड़ की आबादी वाले इस देश ने वैज्ञानिक क्षेत्र में इतनी प्रगति कर ली कि हम सुबह जागने से लेकर रात को सोने तक, ऐसे अनेक उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं, जिनका संबंध कहीं-न-कहीं इससे जरूर है। हम 142 करोड़ से ज्यादा होकर भी तकनीकी क्षेत्र में इतनी उन्नति क्यों नहीं कर पाए? अमेरिका को इतना ताकतवर उसके 'माहौल' ने बनाया है। इसमें उसकी शिक्षा पद्धति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अमेरिका ने अपनी जमीन पर ऐसा माहौल पैदा कर दिया, जिसमें प्रतिभावान लोगों को आगे बढ़ने में आसानी होती है। यह अमेरिकी माहौल का ही कमाल है कि वहां ऐसे लोग भी कुछ ही वर्षों में कई बिलियन डॉलर की कंपनी खड़ी कर देते हैं, जिनके पास किसी कॉलेज की डिग्री नहीं होती!
क्या अमेरिका के दूर-दराज के सरकारी स्कूल और भारत के ऐसे इलाके में स्थित सरकारी स्कूल की तुलना कर सकते हैं? दोनों जगह शिक्षा का स्तर कैसा है? बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों में हमारे सरकारी स्कूलों का कैसा प्रदर्शन रहता है? अगर भारत को विश्वगुरु बनाना है तो इसकी शुरुआत गांवों से करनी होगी। अमेरिका की शिक्षा पद्धति बहुत लचीली है। वहां कई बार ऐसा हुआ कि कोई विद्यार्थी इंजीनियर बनने गया, लेकिन प्रबंधक बनकर लौटा! अमेरिका में सरकारी नौकरियों का इतना ज्यादा महिमा-मंडन नहीं किया जाता, जैसा कि हमारे देश में देखने को मिलता है। वहां करोड़ों लोग सिर्फ सरकारी नौकरी का सपना लेकर अपनी ज़िंदगी के कई साल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में नहीं लगाते। भारत में स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है! जो नौजवान पांच साल या इससे ज्यादा अवधि तक खुद को सबसे अलग रखकर सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें पढ़ता रहा और उसका कहीं चयन नहीं हुआ, क्या उसमें कोई आविष्कार करने की शक्ति या ऊर्जा बचेगी? अमेरिका में बनीं तकनीकी क्षेत्र की जितनी बड़ी कंपनियां हैं, उन सबमें एक बात जरूर मिलेगी- समस्या तलाशें और उसका समाधान दें। गूगल ने इंटरनेट सर्च को बिल्कुल आसान कर दिया। फेसबुक ने लोगों को जोड़ने का अद्भुत मंच दे दिया। वॉट्सऐप ने संदेश भेजने के तौर-तरीके ही बदल दिए। अब ग्रोक द्वारा दिए जा रहे जवाबों से दुनिया हैरान है। इस दौड़ में हम कहां हैं? क्या हमें इतने से ही संतोष कर लेना चाहिए कि हम एक बड़े एआई उपभोक्ता बनने की ओर अग्रसर हैं? हमारे देश में उस समय बड़ी खुशी की लहर देखने को मिलती है, जब किसी अमेरिकी कंपनी का सीईओ या शीर्ष अधिकारी भारतीय मूल का कोई व्यक्ति बन जाता है। निश्चित रूप से यह उसकी निजी उपलब्धि होती है, जिसके लिए वह तारीफ का हकदार है। उसे बधाई देने के साथ हमें इस सवाल पर विचार करना चाहिए कि यह व्यक्ति भारत में रहकर अपना उद्यम क्यों स्थापित नहीं कर पाया? भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए हमें बहुत लंबा सफर तय करना होगा, सही दिशा में लगातार मेहनत करनी होगी। समाज और सरकार इसके लिए उचित माहौल तो उपलब्ध कराएं।